दिल्ली के लाल किले का इतिहास (History of Red Fort of Delhi )

लाल किला (Red Fort)

भारत की राजधानी दिल्ली में स्थित लाल किला देश की आन बान शान और देश की आजादी का प्रतीक है मुगल काल में बना इस ऐतिहासिक किले को वर्ष 2007 में यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर स्थल चयनित किया गया था और भारत के प्रमुख पर्यटन स्थलों में से एक है

लाल किले का आकार (Area of Red Fort

 लाल किला सलीमगढ़ के पूर्वी छोर पर स्थित है इसको अपना नाम लाल बलुआ पत्थर की प्राचीर एंंव के  दिवार के कारण मिला और संगमरमर पत्थर से बना है। किले का पूरा परिमाप लगभग 900x550 मीटर है जिसमें किले की दीवारें भी 2.41 किलोमीटर की परिधि में फैली है। और दीवारों की ऊंचाई शहर की तरफ 33.5 मीटर  तक जबकि नदी की तरफ 18 मीटर है। यही इसकी चारदीवारी बनाती है। यह दीवार 1.5 मील व  2.5 किलोमीटर  लंबी है और नदी के किनारे से इसकी ऊचाई से 60 फीट व 16 मीटर तथा 110 फीट व 35 मीटर ऊंची शहर की ओर से है ।इसकी  योजना एक 82 मीटर की  वर्गाकार ग्रिड का प्रयोग कर चौखाने बनाई गई हैं। लाल किले की योजना पूर्ण रूप से की गई थी और उसके बाद के बदलावों में भी इसकी योजना के मूल रूप में कोई बदलाव नहीं होने दिया है।

किले के पूर्वी दिशा में महल है जबकि इसके 2 द्वार है जिनमें पूर्व की तरफ दिल्ली गेट और दक्षिण की तरफ लाहौरी गेट है लाहौरी गेट के पास मुख्य प्रवेश द्वार है।


लाल किला कब और किसने बनवाया और इसकी डिजाइन किसने बनाई थी

शाहजहां ने इसे तब बनवाया  था जब उसने अपनी राजधानी को आगरा से दिल्ली स्थानांतरित किया था। यह किला यमुना नदी के किनारे स्थित है। लाल किले का निर्माण  12 मई 1638 का मोहर्रम के पवित्र महीने में शुरू हुआ था जो कि 6 अप्रैल 1648 को पूरा हुआ था इस तरह इसे बनने में पूरे 10 साल लगे थे और इसकी एक विशेषता यह भी थी कि शाहजहां ने खुद अपनी देखरेख में बनवाया था।  इसके डिजाइन का निर्माण उस्ताद अहमद लाहोरी द्वारा किया गया था इन्होंने ही ताजमहल की डिजाइन भी बनाई थी।

किले का नाम लाल किला क्यों पड़ा किले के अन्य नाम क्या थे

पहले इस किले का नाम किला-ए-मुबारक था जिसका अर्थ ब्लेस्ड फोर्ट। इसके अलावा किला -ए-शाहजहानाबाद या किला-ए- मुआला ( ऊंचा किला) भी इसके नाम रहे हैं।
 यह मध्यकालीन शहर शाहजहानाबाद का हिस्सा था जिसे आजकल पुरानी दिल्ली के नाम से जाना जाता है।

आकर्षक आर्किटेक्चर वाले इस किले का नाम लाल रंग के पत्थर से बनी दीवार के कारण लाल किला पड़ा असल में  शाहजहां को लाल रंग पसंद था।

 मुगल काल में औपचारिक और राजनीतिक घटनाओं का साक्षी रहे इस किले के इतिहास से काफी रोचक बातें जुड़ी है।

किस किस शासक ने इसके लिए आप अपना शासन चलाया?

शाहजहां के अधीन  लाल किला : शाहजहां पांचवा मुगल शासक था जब उसने अपनी राजधानी को आगरा से दिल्ली स्थापित करना चाहा। उस्ताद अहमद लाहौरी ने किले को डिजाइन किया । शाहजहाँ  के जीवनकाल में ही इसके भीतर बहुत से परिवर्तन किए गए।

औरंगजेब के अधीन लाल किला:  शाहजहां के बेटे और उत्तराधिकारी औरंगजेब ने इसमे पर्ल मस्जिद बनवाई जिसे मोती मस्जिद कहते हैं । उसने यह मस्जिद अपने तीन अन्य भाइयों से सत्ता प्राप्ति के संघर्ष  में मिली जीत के तुरंत बाद बनवाई थी । उसने मुख्य प्रवेश द्वार की दो प्राचीर भी बनाई और औरंगजेब के देहांत के बाद किले का पतन भी शुरू हो गया।

औरंगजेब के बाद लाल किला: 1712 में बहादुरशाह जफर के बड़े बेटे जहांदरशाह  ने औरंगजेब का पद संभाला। लेकिन फर्रूखसियर ने उसकी हत्या कर दी थी। इसी दौर में किले के रंग महल में लगे चांदी के पट्टे हटाकर तांबे के लगा दिए थे ऐसा उस वक्त पैसे की तंगी को पूरा करने के लिए किया गया था और पैसा कमाया जा सके। 1718 में मोहम्मद शाह ने किले की जिम्मेदारी ली। 1739 में नादिर शाह ने दिल्ली पर आक्रमण किया उसने किले के साथ पूरे शहर को लूटा और अपने साथ मयूर सिंहासन एवं कोहिनूर हीरा ले गया।

1759 से लेकर 1806 के दौरान जब शाहआलम के शासन का समय था तब मुगलों का शासन दिल्ली में लाल किले से लेकर पालम तक फैल गया था लेकिन के बाद मध्य 18वीं शताब्दी में मराठा, सीख,  जाट,  गुज्जर,  रोहिल्ला  और अफगानियो ने बहुत से आक्रमण किये  और मुगलों की सत्ता लाल किले पर नियंत्रण शक्ति कम हो गई।

मराठों के अधीन लाल किला: 1752 में मुगलों ने मराठों से एक संधि की और किले के संरक्षक बन गए। मराठों ने लाहौर और पेशावर पर भी आक्रमण किए और लाल किले पर कब्जा किया, जिससे अहमद शाह अब्दाली के साथ उनकी सत्रुता हो गई। किले को बचाने के लिए मराठों ने शाहजहां द्वारा बनाई गई दीवाने-ए-खास की परते को पिघलाकर कुछ पैसे इकट्ठे किए जिससे वह अहमद शाह अब्दाली से लड़ सके। अहमद शाह अब्दाली ने 1761 में मराठा को पानीपत के तीसरे युद्ध मे हरा दिया था। 1771 में मराठों  से अहमदशाह आलम दिल्ली का शासक बन गया तब तब सिखों ने किले पर आक्रमण किया  लेकिन उन्होंने शहर के भीतर गुरुद्वारा बनवाने की मांग के साथ ही किला लौटाने की शर्त रखी।

ब्रिटिश शासकों के अधीन लाल किला: 1803 में दूसरे मराठा ब्रिटिश युद्ध में मराठों को अंग्रेजों की ईस्ट इंडिया कंपनी ने दिल्ली के युद्ध में हरा दिया। इससे मराठों का दिल्ली और लाल किले पर अधिकार पूरी तरह से समाप्त हो गया। उन्होंने मुगलों के राज्य और लाल किले पर कब्जा कर लिया उस समय बहादुर शाह जफर शासक थे।1857 की क्रांति के समय बहादुर शाह जफर  ने किला छोड़ दिया।बाद में  उन्हें  किले के अंदर ही बंदी बनाकर रखा गया और उसके बाद उनकी मृत्यु हो गई और इसके साथ ही मुगल काल की समाप्ति हो गई1857 की क्रांति से गुस्साए अंग्रेजों ने इस किले का बहुत हिस्सा तबाह कर दिया इसके बाद अंग्रेजों ने मुगलों के कई किलो और खजाना को लूटा लाल किले पर भी ब्रिटिश कंपनी ने कब्जा कर लिया और उन्होंने बहुत सी बेशकीमती चीजें हथिया ली जिसमे मयूर सिंहासन और कोहिनूर का हीरा भी शामिल था। इसी दौरान कोहिनूर को ब्रिटेन भेज दिया।  इसके अलावा शाहजहाँ का और बहादुर शाह जफर द्वितीय का मुकुट भी शामिल है अंग्रेजों ने बहुत ही नियोजित तरीके से लाल किला को बर्बाद किया जिसमें उन्होंने यहां के फर्नीचर उद्यान हरम की जगह और नौकरों के क्वाटर को तबाह किया। सफेद मार्बल की इमारत के अलावा अंदर का लगभग पूरा किले का रंग रूप  उन्होंने  खराब कर दिया। फिर 1899  में जब लॉर्ड कर्जन भारत के वायसराय बने तब उन्होंने इसके इमारत के पुनर्निर्माण और उद्यानों को वापिस सही कराने का आदेश दिया। इससे ब्रिटिश सेना का मुख्यालय भी बनाया गया।

स्वतंत्रता के बाद लाल किला: 1947 को जब भारत आजाद हुआ तब अंग्रेज भारत छोड़कर चले गए तब जाकर लाल किले पर नेहरू ने लाहौरी गेट से भारत के झंडे का ध्वजारोहण किया था स्वतंत्रता के बाद  2003 तक लाल किले का उपयोग आर्मी कैंटोनमेंट के रूप में किया जाता था इसके बाद 22 दिसंबर 2003 को  इसे भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग को दे दिया गया। वर्तमान में  हर स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस पर किले पर ध्वजारोहण किया जाता है।

प्रधानमंत्री हर गणतंत्र दिवस पर लाल किले पर झंडा ध्वजारोहण करता है और देश को संबोधित करते हैं।


लाल किले के परिसर में बनी मुख्य इतिहासिक इमारतें

छाबड़ी बाजार :

दुनिया का यह भव्य और ऐतिहासिक स्मारक लाल किले के परिसर में स्थित है और इस किले में मौजूद मुख्य ऐतिहासिक स्मारकों में से एक है जिसे सैलानियों द्वारा खूब पसंद किया जाता है

लाहौरी गेट

लाहौरी गेट दुनिया की सर्वश्रेष्ठ इमारत लाल किले के अंदर बने मुख्य आकर्षणों में से एक है लाहौरी गेट का नाम लाहौर शहर से लिया गया है मुगल सम्राट शाहजहां के पुत्र और उत्तराधिकारी औरंगजेब के शासनकाल के दौरान लाहौरी गेट की देखरेख नहीं की गई थी जिसके चलते इसके आकर्षण में कमी आ गई थी 
आपको बता दें कि जब इस गेट का निर्माण किया गया था तब मुगल बादशाह शाहजहां ने इसकी मनमोहक सुंदरता की वजह से से एक सुंदर महिला के चेहरे का खिताब दिया था ।

देश के आजादी के बाद जब से देश के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने यहा तिरंगा  फहराया था तब से हर साल 15 अगस्त पर यहां की बालकनी से देश के पीएम द्वारा तिरंगा फहराया जाता है।


दिल्ली गेट

लाल किले के अंदर बना दिल्ली गेट भी अपनी सुंदरता और सौंदर्य की वजह से पर्यटकों का ध्यान अपनी तरफ आकर्षित करता है यह गेट लाल किले के दक्षिण की तरफ बना हुआ वहां इस गेट से अंदर वीवीआइपी कुछ स्पेशल  लोग प्रवेश कर सकते हैं जबकि आम लोग इस भव्य लाल किले अंदर  बने अन्य गेट से प्रवेश ले सकते हैं
 इस गेट में दोनों तरफ हाथी की कला बनाई गई है



रंग महल

जंग-ए-आज़ादी का गवाह रह चुका दुनिया के इस भव्य और ऐतिहासिक लाल किले के अंदर बना रंग महल 
रंगीन मिजाज  रहे मुगल शासक शाहजहां की पत्नी और उनकी का रखैलों के लिए बनाया गया था।
 पहले रंग महल का नाम "पैलेस ऑफ कलर्स" भी रखा गया था इस रंग महल के बीचो बीच एक नहर भी बनी हुई थी जो कि महल के तापमान को गर्मियों के दिन में बेहद ठंडा  रखती थी। वही रंग महल की बेहद सुंदर नक्काशी की गई थी इसकी भव्यता और सौंदर्य को देखकर हर कोई इसकी तारीफ करता था

दीवाने-ए- आम

यह मुगल शाहजहां के द्वारा 1631 और 1640 के बीच में प्रमुख कोर्ट के तौर पर बनाया गया था उस दौरान मुगल बादशाहों का शाही महल हुआ करता था।
 इस स्मारक में शानदार नक्काशी और आकर्षक सजावट करने के साथ-साथ सफेद संगमरमर के पत्थरों का इस्तेमाल किया गया था जहां पर सभी मुख्य फैसले लिए जाते थे।


दीवाने खास

भारत के इस बहुमूल्य व इतिहासिक इमारत के अंदर बना दीवान-ए-खास भी मुगल बादशाह शाहजहां का खास कमरा था। जहा की दीवारो में  बहुमूल्य पत्थर रत्न जुड़े हुए थे।



मोती मस्जिद

दुनिया किस भव्य किले के परिसर में बनी मोती मस्जिद को साल 1659 में मुगल शासक शाहजहां के बेटे औरंगजेब द्वारा अपने निजी मस्जिद के रूप में बनवाया गया था जहां पर वह अपनी रोज की नमाज अदा करता था मोती मस्जिद का अर्थ है "पर्ल  मस्जिद"। इस शाही और अति भव्य  मस्जिद में छोटी-छोटी गुंबद मेहरा बनी हुई है इस मस्जिद को सफेद संगमरमर के पत्थरों से बनवाया गया था इस मस्जिद में आंगन है जहां पर सुंदर वास्तुकला डिजाइन की सादगी को देख सकते हैं।

मुमताज महल

मुमताज महल इस भव्य ऐतिहासिक लाल किले के परिसर में अंदर बनी 6 सबसे खूबसूरत ऐतिहासिक संरचना में से एक है जिसका नाम मुगल सम्राट शाहजहां की सबसे पसंदीदा बेगम मुमताज महल के नाम पर रखा गया है लाल किले के अंदर की सभी संरचना यमुना नदी से जुड़ी हुई है इस महल का निर्माण सफेद संगमरमर के पत्थरों से किया गया था जिन पर सुंदर फूलों की आकृति बनी हुई है।
मुमताज महल मुगल शासकों की अनूठी वास्तुकला रक्षक डिजाइन का पता लगाने के लिए प्रभावशाली संरचना भी है लाल किले के परिसर में बने मुगल मुमताज महल में पहले मुगल बादशाह राजशाही महलों में काम कर रही महिला या फिर दासियाँ रहा करती थी हालांकि अब यह एक खूबसूरत म्यूजियम है जिसके अंदर मुगल काल के अंदर कई कलाकृति जैसे तलवारे, पेंटिंग, पर्दे व अन्य वस्तुएं रखी हुई है।

नौबत खाना

दुनिया के सर्वश्रेष्ठ इमारत के अंदर बना नौबत खाना,  यहां के प्रमुख ऐतिहासिक संरचना में से एक है जिसे प्रमुख रूप से संगीतकारों के लिए बनाया गया था।




खास महल

भारत की शान माने जाने वाले से इतिहासिक इमारत के अंदर बने खास महल पहले मुगल बादशाह शाहजहां का निजी  आवास हुआ करता था जिसके अंदर तीन अलग-अलग तरह के कक्ष बने हुए थे। खास महल की बहुत सुंदर नक्काशी की गई जिसमें बेहद शानदार तरीके से सफेद संगमरमर के पत्थर और फूलों की बनावट से सजाया गया।


हमाम

किले के अंदर बना हमाम एक ऐसा ऐतिहासिक स्मारक है जो सम्राटों द्वारा शाही स्नान किया जाता था इस स्मारक का इस्तेमाल सम्राटों द्वारा शाही स्नान के लिए किया जाता था जिसमें स्नान के लिए पानी की जगह गुलाब जल का इस्तेमाल किया जाता था यह स्नानघर सुंदर सफेद संगमरमर के पत्थरों सुंदर फूलों के द्वारा डिजाइन किए गए थे।


हीरा महल

दुनिया के सबसे खूबसूरत भव्य किले के दक्षिण की तरफ बना हीरा महल देखने में बेहद भव्य है जिसे बहादुर शाह द्वितीय ने बनवाया था कुछ इतिहासकारों के मुताबिक प्रभावशाली सम्राट बहादुरशाह ने इस महल के अंदर पहले एक बहुमूल्य हीरे को छिपाया हुआ था जो कि कोहिनूर हीरे से भी ज्यादा बेशकीमती था हालांकि, अंग्रेजी के समय लाल किले में बने हीरा महल को नष्ट कर दिया गया था


चट्टा चौक

इस ऐतिहासिक और भव्य लाल किले के अंदर  मुगलों के समय में सुंदर लगता था जब बेशकीमती गहने कपड़े मिलते थे




जंग आजादी का गवा रह चुका है लाल किला

15 अगस्त 1947 में भारत को अंग्रेजों की गुलामी से आजादी  मिलने के बाद देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने दिल्ली के लाल किले से पहली बार ध्वजारोहण कर देश की जनता को संबोधित किया था और अपने देश में अमन चैन शांति बनाए रखने एवं इसके अभूतपूर्व विकास करने का संकल्प लिया था इसलिए इस किले को जंग-ए-आजादी का गवाह भी माना जाता है
 वहीं तभी से हर साल  स्वतंत्र दिवस के मौके पर देश के प्रधानमंत्री  द्वारा  लाल किले पर झंडा फराया जाने की परंपरा है

दिल्ली के इस भव्य किले का वास्तविक नाम


दिल्ली के इस ऐतिहासिक स्मारक लाल किले का असली नाम किला-ए-मुबारक है। मुगल सम्राटों के शाही  शहंशाहो के द्वारा इसे मुबारक किला भी कहा जाता था

लाल किला देखने का समय

लाल किला देखने का समय 9:30 बजे से शाम 4:30 बजे तक है यह समय सोमवार के अलावा सप्ताह के सभी दिनों में खुला रहता है



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