क्या आप उस कुतुब मीनार का इतिहास जानते हो? जिसको कुतुबद्दीन ने नही चद्रगुप्त विक्र्मादित्य के नवरत्नो मे से एक खगोल शास्त्री वराहमिहिर ने बनवाया था।और यह कुतुबमीनार दिल्ली मे किस शहर के पास बना हुआ है। तो चलिये जानते है इस कुतुबमीनार की सच्चाई और इतिहास क्या है:-
कहां पर है:
कुतुबमीनार भारत की राजधानी दिल्ली के महरौली क्षेत्र में है यह महरौली दक्षिणी दिल्ली में पड़ता है इसके लिए बस तक मेट्रो से जाया जा सकता है|
कब और किसने:
दिल्ली के पहले मुस्लिम एवं गुलाम वंश शासक कुतुबुद्दीन ऐबक ने अफगानिस्तान में स्थित जाम की मीनार से प्रेरित एवं उससे आगे निकलने की इच्छा से इस्लाम फैलानेे की सनक के कारण वेेदशाला को तोड़कर कुतुब मीनार का 1193 ईसवी में आधारशिला रखी।
इसके बाद ऐबक के उत्तराधिकार इल्तुतमिश ने इसमें तीन मंजिलों को बढ़ाया और अंत में सन 1367 में फिरोज शाह तुगलक ने पांचवी व अंतिम मंजिल बनवाई। शेरशाह सूरी ने इसमें प्रवेश द्वार बनवाया था।
किस वस्तु तथा कैसे बनाया :
मीनार को लाल बलुआ पत्थर से बनाया गया जिस पर कुरान की आयतों की एवं फूलों बेलो की नक्काशी की गई जो कि फूल बैलों को तोड़कर अरबी शब्द बनाए गए जो कि कुरान की आयतें नहीं यह मीनार दिल्ली शहर ढिल्लिका के प्राचीन किले लालकोट के अवशेषों से बनी है।
कुतुबमीनार का आकार
यह ऊंचाई में एक टाॅवर के सामान है जिस प्रकार वर्तमान में टाॅवर का आधार चौड़ा होता है और फिर ऊंचे ऊंचे होने पर छोटा होता रहता है ठीक इसी तरह इसका है। यह उचाई में 72.5 मीटर (237.86 फीट) और व्यास 14.3 मीटर है तो ऊपर जाकर शिखर पर 2.75 मीटर (9.02 फीट )हो जाता है
कुतुब मीनार की सच्चाई:
क़ुतुब मीनार का वास्तविक नाम विष्णु स्तंभ है जिसे कुतुबुद्दीन ने नहीं बल्कि सम्राट चंद्रगुप्त विक्रमादित्य के नवरत्नों में से एक खगोल शास्त्री वराहमिहिर ने बनवाया था । मीनार के पास जो बस्ती है उसे महरौली कहा जाता है यह संस्कृत शब्द मिहिर अवेली का है इस क्षेत्र में विख्यात खगोलज्ञ मिहिर रहा करते थे। उनके साथ उनके सहायक गणितज्ञ और तकनीविद भी रहते थे। यह खगोलीय प्रेक्षण टावर था। यह लोग मीनार का खगोलीय गणना अध्ययन के लिए प्रयोग करते थे यह 24 पंखुड़ी वाले कमल के फूल की इमारत पूरी तरह हिंदू विचार है इस टावर के चारों हिंदू राशि चक्र को 27 नक्षत्रों या तारामंडल के लिए मंडप या गुुुबजदार इमारतें थी। बहुत सारे परिसरों के स्तंभों और दीवारों पर संस्कृत में लिखे विवरणों को अभी भी पढ़ा जा सकताा है।
इस मीनार का प्रवेश द्वार उत्तर दिशा में है पश्चिम में नहीं जबकि इस्लामी धर्म शास्त्र और परंपरा में पश्चिम का महत्व है। पास में ही जंग ना लगने वाले लोहे के खंभे पर ब्राह्ममी लिपि में संस्कृत में लिखा है कि विष्णु का यह स्तंभ विष्णुपाद गिरी नामक पहाड़ी पर बना था। खंभे को एक हिंदू राजा की पूर्व और पश्चिम में जीतों के सम्मानस्वरूप बनाया गया था। स्तंभ में 7 तल थे जो कि 1 सप्ताह को दर्शाते थे लेकिन अब स्तंभ में केवल 5 तल है छठवें को गिरा दिया गया था और समीप के मैदान पर फिर से खड़ा कर दिया गया था। सातवे तल पर वास्तव में चार मुख वाले ब्रह्ममा की मूर्ति है जो कि संसार का निर्माण करने से पहले अपने हाथों में वेदों को लिए थे।
ब्रह्मा की मूर्ति के ऊपर एक सफेद संगमरमर की छतरी या छत्र था जिसमें सोने के घंटे की आकृति खुदी थी । लोहे स्तंभ को गरुड़ध्वज या गरुड़ स्तंभ कहा जाता था। यह विष्णु के मंदिर का प्रहरी स्तंभ समझा जाता था। एक दिशा में 27 नक्षत्रों के मंदिरों का अंडाकार घिरा हुआ भाग था। टावर का घेरा ठीक ठीक तरीके से 24 मोड देने से बना है और इसमें क्रमश: मोड, वृत्त की आकृति और त्रिकोण की आकृतियां बारी-बारी से बदलती है इससे यह पता चलता है कि 24 के अंक का सामाजिक महत्व था और परिसर में से प्रमुखता दी गई थी। इसमें प्रकाश आने के लिए 27 झिरी या छिद्र है। यदि इस बात को 27 नक्षत्र मंडपों के साथ विचार किया जाए है इस बात में कोई संदेह नहीं रह जाता कि टाॅवर खगोलीय प्रेक्षण था।
महत्वपूर्ण बिंदु
1 कुतुबुद्दीन ऐबक ने सभी मंडपो या गुंबजदार इमारतों को नष्ट कर दिया था और यह एक विवरण छोड़ा था जिसमें यह लिखा था।
2 मीनार के मध्य स्थित मध्य में लेटे हुए विष्णु की मूर्ति को मोहम्मद गौरी और उसके गुलाम कुतुबुद्दीन ने नष्ट कर दिया था।
3 मुस्लिम हमलावरों ने नीचे के तल पर सैया पर आराम करते विष्णु की मूर्ति को भी नष्ट कर दिया था
4 फूल बैलों को तोड़कर अरबी शब्द बनाए गए।
2 टिप्पणियाँ
Kaafi achha hai. Me bhi jaugi iss jagah ko dekhne
जवाब देंहटाएंBohot achi hai nice 👌
जवाब देंहटाएंthanks and follow