गुरुद्वारा बंगला साहिब (Gurudwara Bangla Sahib)

राजधानी दिल्ली में स्थित बंगला साहिब गुरुद्वारा का अपना गौरवशाली इतिहास से बंगला साहिब दिल्ली के सबसे प्रमुख सिख गुरुद्वारे में से एक है।



यह कहां पर है।

गुरुद्वारा बंगला साहिब सबसे प्रमुख सिख गुरुद्वारों में से एक है यह नई दिल्ली के कनॉट प्लेस इलाके में अशोक रोड और  बाबा खड़क सिंह मार्ग के पूर्व की ओर चौराहे पर स्थित है।

बंगला साहिब से पहले यहा का स्थान

मूल रूप से यह हिंदू  राजा जयसिंह, 17 वीं सदी में भारत शासक का बंगला हवेली हुआ करते थी। तब इसे जयसिंहपुर महल के नाम से जाना जाता था | राजा जयसिंह मुगल बादशाह औरंगजेब के महत्वपूर्ण सैन्य नेता थे। इसके बाद कनॉट प्लेस बनाने के लिए शासकों ने अपने पड़ोसी राज्य को ध्वस्त किया था।

इसकी स्थापना कैसे हुई

कहा जाता है कि गुरु हरी किशन सबसे कम उम्र  में से एक थे। 8 साल की बहुत ही कम उम्र में गद्दी संभाली थी। छोटी उम्र में स्वाभाविक रूप से उन्होंने अन्य धर्मों के लोगों को अपनी ओर आकर्षित किया था।



गुरु हरकिशन जी को बहुत छोटी उम्र में गद्दी प्राप्त हुई थी इसका मुगल बादशाह औरंगजेब ने विरोध किया इस मामले में औरंगजेब ने गुरु हरकिशन को दिल्ली बुलाया ताकि वह जान सके के सिखों  के  नये गुरु  में ऐसा क्या खास है जो इतनी कम उम्र में उन्हें औदा प्राप्त हुआ। यह कार्य औरंगजेब ने राजा जय सिंह को दिया और जयसिंह ने उनको अपने यहां प्रवास के दौरान इसी  जगह जयसिंहपुर  महल में रहते थे।

17वी शताब्दी, 1664 में गुरु हरकिशन साहिब जी जब दिल्ली पहुंचे और दिल्ली प्रवास के दौरान इसी बंगले जयसिंहपुर महल में रहे तब उनके प्रवास के दौरान उनके क्षेत्र में  उस समय चेचक और हैजा  की बीमारी से लोग पीड़ित थे और गुरु हरकिशन ने बीमारी से पीड़ित लोगों की सहायता  शुद्ध पानी पिलाकर करते थे जो कि उस महल परिसर में स्थित कुएं से पानी दिया करते थे।

ऐसा माना जाता है कि गुरु जी ने अपने चरण सरोवर  में रखकर अरदास से मरीजों को सहायता की और कई लोगों को स्वस्थ लाभ कराने के बाद मे उन्हें  स्वयं चेचक निकल आए और अंत में 30 मार्च 1664 को उनका निधन हो गया।
उन्होंने मरते समय उनके मुंह से "बाबा बकाले" शब्द निकले जिसका अर्थ कि उनका उत्तराधिकारी बकाला गाँव  में ढूंढा जाए साथ ही गुरु  साहिब ने सभी लोगों को निर्देश दिया कि कोई भी उनकी मृत्यु पर कोई  रोएगा नहीं।

मंदिर के रूप में इसकी स्थापना

 गुरु हरी किशन की मृत्यु के पश्चात राजा जयसिंह ने कुएं के ऊपर एक छोटे पानी के टैंक का निर्माण करवाया। टैंक के पानी को "अमृत" के समान माना जाता है। इसके पश्चात मुगल साम्राज्य के बहादुर शाह जफर दितीय के समय जब जनरल सरदार बघेल सिंह ने 1783 में बहादुर शाह जफर के साथ समझौता हुआ तब  उन्होंने गुरुद्वारा बनाने की शर्त रखी थी तब फिर बघेल सिंह  ने 1783 में ही इस जगह एक छोटा सा मंदिर के रूप में गुरुद्वारा  बनाया गया  और उसी समय ही दिल्ली में शीशगंज गुरुद्वारे की स्थापना की गई थी। देश आजाद होने के बाद इस गुरुद्वारे की जिम्मेदारी दिल्ली गुरुद्वारा सिख  प्रबंधक कमेटी को दे दी गई

बंगला साहिब गुरुद्वारा की वास्तुकला

गुरुद्वारा बंगला साहिब के प्रमुख पूजा स्थल है जो दुनिया भर की यात्री आते हैं इस गुरुद्वारे की संरचना बहुत आकर्षक हैं  और यह दुनिया के सबसे सुंदर धार्मिक स्थलों में से एक है यह गुरुद्वारा सिर्फ सिख धर्म ही नहीं बल्कि सभी धर्मों जातियों और समुदायों के आगंतुकों को आकर्षित करता है। यह शानदार इमारत क्लासिक 6 शैली में बनाई गई है जिसमें मुगल और राजपूत शैलियो का भारी प्रभाव है। इसकी रचना  दिल्ली के मौसम की स्थिति के लिए उपयुक्त और अनुकूल बनाया गया है। यह संरचना ज्यादातर सफेद संगमरमर से बनी है यह एक शांत और सुखदायक वाइब प्रदान करती है। इस गुरुद्वारे का केंद्रीय सेवन गुंबद  सूर्य  प्रकाश में चमकता है और यह इसका प्रमुख आकर्षण भी है।


यहां पर एक लंबा पुल  है जो हवा में सिख ध्वज लहराता रहता है इस ध्वज पर सिख धर्म का प्रतीक बना हुआ है जिसे साहिब के रूप में जाना जाता है। यह गुरुद्वारा में आने वाले यात्रियों को दूर से ही दिखाई देता है और यह दर्शाता कि वह अपनी मंजिल पर पहुंचने ही वाले हैं

संरचना के सामने की दीवार पर आकर्षक नक्काशी की गई है। जिसे देख हर कोई मंत्रमुग्ध  हो जाता है। गुरुद्वारा परिसर के भीतर स्थित टैंक सबसे महत्वपूर्ण संरचना है। यह टैंक  खुले आकाश के नीचे स्थित है जहां पर आने वाले यात्री गुरुद्वारे में प्रवेश करने से पहले डुबकी लगाते हैं।




यह गुरुद्वारा पंजाब के अमृतसर में स्वर्ण  गुरुद्वारे की तरह है।


इस गुरुद्वारे का वर्तमान रूप




















वर्तमान में इस गुरुद्वारे में सरोवर झील है जो सिखों के लिए श्रद्धा का स्थल है और हर साल गुरु हरकिशन की जयंती पर विशेष मंडली का आयोजन किया जाता है। यह गुरुदरा अब सिखों और हिंदुओं के लिए एक पवित्र तीर्थ है। भूमि पर गुरुद्वारे के साथ-साथ एक रसोईघर, बड़ा तालाब है , स्कूल और आर्ट गैलरी भी है इस गुरुद्वारे में घर, हाई सेकेंडरी स्कूल, बाबा बघेल सिंह म्यूजियम, एक लाइब्रेरी, और एक अस्पताल, भी है वर्तमान में गुरुद्वारा लंगर हॉल में कंडीशन भी लगाए गए हैं और नई यात्री और मल्टी लेवल पार्किंग जगह का भी निर्माण किया गया है वर्तमान में टॉयलेट की सुविधा भी उपलब्ध है गुरुद्वारे की पिछले भाग को भी ढक दिया गया है ताकि सामने से कोई द्वारा काफी अच्छा दिखे।

बंगला साहिब गुरुद्वारा में लंगर



बंगला साहिब एक ऐसा पवित्र धार्मिक स्थल है जहां पर कोई भी भूखा नहीं सोता है। यहां पर भी सभी गुरुद्वारे की तरह लंगर दिया जाता है। इस गुरुद्वारे में लंगर हॉल है जहां  सभी  जाति या धर्म के लोगों को बिना किसी शुल्क के भोजन उपलब्ध कराया जाता है। गुरुद्वारे के लंगर हाल में भोजन दिन के 12:00 बजे से रात के 11:45 बजे तक प्रदान किया जाता है इसमें गुरद्वारा उन सभी लोगों के लिए खुला रहता है जो जहां की यात्रा करने आते हैं इसके साथ ही नहीं लंगर  रसोई में मदद करने आने वाले यात्री भी पुण्य प्राप्त कर सकते हैं लंगर में मदद करना सबसे बड़ी प्रार्थना मानी जाती है।

बंगला साहिब में समारोह




बंगला साहिब का एक प्रमुख धार्मिक स्थल है जिसकी वजह से यहां पर इस धर्म से जुड़े सभी त्योहरों को बहुत उत्साह और जोश के साथ मनाया जाता है। यहाँ  का वार्षिकोत्सव प्रकाश उत्सव के साथ  शुरू होता है तो दसवीं सिख गुरु गोविंद सिंह के जन्म का उत्सव है वैसा  फसल का मौसम का उत्सव जिसे यहां बड़ी ही धूमधाम से मनाया जाता है गुरु पूरब या गुरु नानक देव का जन्म गुरु हरकिशन की जतिया मनाए जाने वाले प्रमुख त्योहारों में से एक हैं

कुछ महत्वपूर्ण बिंदु


अगर आप कहां पर दर्शन करने आते हैं तो:- 
1.आप यहां पर मेट्रो, रेल गाड़ी, बस, टैक्सी या कैब आदि के द्वारा आ सकते हैं। यहां का नियर रेलवे स्टेशन नई दिल्ली है और मेट्रो स्टेशन राजीव चौकपटेल चौक है।
2. आपको इस गुरुद्वारे के अंदर अपने सिर के बालों को ढक कर आना होगा जूते ना पहनकर आने के लिए कहा जाता है इसके लिए वहां पर जूता घर भी बनाया गया है। गुरुद्वारे के बाहर सिर  को ढकने के लिए सिर का स्कार्फ का हमेशा रखा होता है।
3. विदेशियों और दर्शनार्थियों के साथ गाइड भी होते जो बिना कोई पैसे के लिए लोगों की सहायता करते हैं।
4. गुरुद्वारे परिसर में शांति बनाए रखे और एक, सभ्य सम्मानजनक तरीके से व्यवहार करें।
5. इसमें कोई प्रवेश शुल्क नहीं है
6. गुरद्वारा साल में सभी 12 महीने और दिन के 24   घंटे खुला रहता है ।

By Mohit Kumar

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