दिल्ली गेट का इतिहास ( History of Gate of Delhi)


दिल्ली का गेट :

दिल्ली का गेट को खूनी का दरवाजा भी कहा जाता है

 -: इसको हम दिल्ली का दरवाजा भी कहते है यह वर्तमान समय मे दरियागंज मे  है , यह सड़क के दाएं-बाए के बीच स्थित हैl जो नेताजी सुभाष मार्ग बहादुर शाह जफर मार्ग के बीच हैं




निर्माण तथा उद्देश्य:

इस दरवाजे का निर्माण मुगल बादशाह शाहजहां ने सन 1638 में दिल्ली के सातवें शहर तथा तत्कालीन राजधानी शहर शाहजहानाबाद की घेराबंदी करती रक्षक दीवार के प्रवेश द्वार के रूप में करवाया था। इस गेट का उपयोग नमाज करने हेतु जामा मस्जिद जाने के लिए किया जाता था

इसका निर्माण लाल बलुआ पत्थर तथा अन्य पत्थरों के बड़े अकार से करवाया गया था। द्वार के निकट की दो बड़े-बड़े हाथी की मूर्तियां भी बनी थी। इसे पहले हाथीपोल भी कहा जाता था


*22 सितंबर 1857 को बहादुर शाह जफर के आत्मसमर्पण के बाद ब्रिटिश नेता विलियम हसन द्वारा मुगल वंश के तीन राजकुमार का कत्ल कर दिया गया था जिसमें बहादुर शाह जफर के बेटे मिर्जा मुगल और तेज सुल्तान और पोता बिरजू अभी वर्क शामिल थे इसलिए गेट का नाम खूनी दरवाजा पडा।

* स्वतंत्रता के पश्चात 1947 के दंगों में भी खूनी दरवाजे पर काफी रख बात हुआ था पुराना किला स्थित कैंप की ओर जाते प्रसन्ना तक यहां पर मौत के घाट उतार दिया गया था

*कुछ ऐसा भी माना जाता है कि औरंगजेब ने अपने बड़े भाई को राजगद्दी   की रेस में जीत  लेने के बाद उसके कटे हुए सिर को  इसी गेट पर प्रदर्शनी के रूप में  लटका दिया था

; दिल्ली का दरवाजा नई दिल्ली तथा पुरानी दिल्ली के रास्ते को जोड़ता है दरवाजे से निकली सड़क उत्तरी और मुख्य शहर से गुजरती हुई उत्तरी  द्वार कश्मीरी गेट तक जाते हैं।


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