मुगलों के विराज लाल किले से सामने बना गुरुद्वारा सिस गंज जो बुराई की हार और सच्चाई की विजय का एक आदर्श है
यह कहां पर है
यह भारत की राजधानी दिल्ली पुरानी दिल्ली के चांदनी चौक पर स्थित है यह है लाल किले के सामने हैं I
गुरु तेग बहादुर जी की याद में गुरद्वारा शीश गंज साहिब
भारत जैसे देश में जहां पर सभी धर्मों को समान महत्व दिया जाता है ऐसे भारत में बहुत महापुरुष है जिन्होंने अपने अपने धर्म को बहुत प्रचार किया है उन्हीं धर्मों में से एक सिखों के गुरु तेग नौवें गुरुबहादुर जी की बात की जाए तो उन्होंने दूसरे धर्म को ना अपनाने के कारण और अपने धर्म के लिए और धर्म की रक्षा के लिए अपने जीवन का बलिदान दिया और अपनी शहादत दी थी । जिसमें टूट गया था औरंगजेब का गुरुर और जीत गया था गुरु का अभिमान।
इनके जीवन के ऐतिहासिक बातें।
गुरु तेग बहादुर का बचपन।
गुरु तेग बहादुर जी का जन्म पंजाब के अमृतसर नगर में हुआ था वह गुरु हरगोविंद सिंह के पांचवे पुत्र थे सिखों के आठवें गुरु "हरीकृषण राय" जी की अकाल मृत्यु हो जाने के कारण जनमत द्वारा गुरु तेग बहादुर को गुरु बनाया गया था उनके बचपन का नाम त्यागमाल था मात्र 14 वर्ष की आयु में अपने पिता के साथ मुगलों के हमले के खिलाफ हुए युद्ध में उन्होंने वीरता का परिचय दिया उनकी वीरता से प्रभावित होकर उनके पिता ने उनका नाम त्यागमल से तेग बहादुर (तलवार के धनी) रख दिया।
धैर्य, वैराग्य और त्याग की मूर्ति गुरु तेग बहादुर जी ने एकांत में लगातार 20 वर्ष तक "बाबा बकाला नामक स्थान" पर साधना की आठवें गुरु हरी किशन जी ने अपनी उत्तराधिकार का नाम के लिए "बाबा बकाला" का निर्देश दिया गुरु जी ने धर्म के प्रसार के लिए कई स्थानों का भ्रमण किया, आनंदपुर साहब से रोपण, सैफाबाद होते हुए वे खिआला (खदल) पहुंचे।
इसके बाद गुरु तेग बहादुर जी प्रयाग, बनारस, पटना, असम आदि क्षेत्रों में गए जहां उन्होंने आध्यात्मिक सामाजिक आर्थिक उन्नयन के लिए रचनात्मक कार्य किए। रूढ़ियों, अंधविश्वासों के आलोचना कर आदर्श स्थापित किए उन्होंने परोपकार के लिए कुएं खुदवाएं और धर्मशालाएं बनवाई। इन यात्राओं में 1666 में गुरु जी के यहां पटना साहब में पुत्र का जन्म हुआ जो "दसवें गुरु गोविंद सिंह" बने।
धर्म के लिए मरना बेहतर समझा।
औरंगजेब के शासन काल की बात है औरंगजेब के दरबार में एक विद्वान पंडित आकर रोज गीता के श्लोक पड़ता और उसका अर्थ सुनाता था पर वह पंडित गीता में से कुछ श्लोक छोड़ दिया करता था।
एक दिन पंडित बीमार हो गया और औरंगजेब को गीता सुनाने के लिए उसने अपने बेटे को भेज दिया परंतु उसे बताना भूल गया कि किन किन श्लोकों का अर्थ राजा को नहीं बताना और पंडित के बेटे ने जाकर औरंगजेब को पूरा गीता का अर्थ सुना दिया, और गीता का पूरा अर्थ सुनकर औरंगजेब को यह ज्ञान हो गया कि प्रत्येक धर्म अपने आप में महान हैं किंतु औरंगजेब की हठधर्मिता थी कि उसे अपने धर्म के अतिरिक्त किसी दूसरे धर्म की प्रशंसा सहन नहीं थी।
औरंगजेब ने सबको इस्लाम धर्म अपनाने का आदेश दे दिया और संबंधित अधिकारी को कार्य सौंप दिया औरंगजेब ने कहा सब से कह दो या तो इस्लाम धर्म कबूल करें या मौत को गले लगा ले इस प्रकार के जबरदस्ती शुरू हो जाने से अन्य धर्म के लोगों का जीवन कठिन हो गया।
जुल्म से ग्रस्त कश्मीर के पंडित गुरु तेग बहादुर के पास आए और उन्हें बताया कि किस प्रकार इस्लाम को स्वीकार करने के लिए अत्याचार किया जा रहा है यातनाएं दी जा रही है और उनसे अपने धर्म को बचाने की गुहार लगाई।
तत्पश्चात गुरु तेग बहादुर जी ने पंडितों से कहा कि आप जाकर औरंगजेब से कह दे कि यदि गुरु तेग बहादुर ने इस्लाम धर्म ग्रहण कर लिया तो उसके बाद हम भी इस्लाम धर्म ग्रहण कर लेंगे और यदि आप गुरु तेग बहादुर जी से इस्लाम धर्म धारण नहीं करवा पाए तो हम भी इस्लाम धर्म धारण नही करेंगे और औरंगजेब ने यह स्वीकार कर लिया।
गुरु तेग बहादुर दिल्ली में औरंगजेब के दरबार में स्वयं गए। औरंगजेब ने उन्हें बहुत से लालच दिए पर गुरु तेग बहादुर जी नहीं माने तो उन पर जुल्म किए गए, उन्हें कैद कर लिया गया, दो शिष्यो को मारकर गुरु तेग बहादुर जी को डराने की कोशिश की गई, लेकिन वह नहीं माने। उन्होंने औरंगजेब से कहा यदि तुम जबरदस्ती लोगों से इस्लाम धर्म ग्रहण करवाओगे तो तुम सच्चे मुसलमान नहीं हो क्योंकि इस्लाम धर्म यह शिक्षा नहीं देता कि किसी पर जुल्म करके मुस्लिम बनाया जाए।
औरंगजेब यह सुनकर आग बबूला हो गया उसने दिल्ली के चांदनी चौक पर गुरु तेग बहादुर जी का शीश काटने का हुक्म जारी कर दिया और गुरु तेग बहादुर जी ने हंसते-हंसते 11नवम्बर 1675 को बलिदान दे दिया। ऐतिहासिक कथाओं के अनुसार जब गुरु तेग बहादुर का मृत्यु हो गई थी तो यहां तक कि उनकी लाश को भी नहीं लेने दिया गया था।
गुरुद्वारा शीश गंज साहिब शहादत
उनको यह शहादत गुरुद्वारा शीशं गंज साहिब की जगह पर सुनाई गई थी ।एक जल्लाद जलाल उद्दीन जल्लाद ने उनका शीश काटा। उनको जहां पर निष्पादन किया गया वहां एक बरगद का पेड़ था।
ऐसे हुआ अंतिम संस्कार
औरंगजेब ने गुरु तेग बहादुर का शरीर सार्वजनिक ना किए जाने का आदेश दिया था और ना उस समय कोई उनके शरीर को ले जाने का साहस कर सका और औरंगजेब ने गुरु तेग बहादुर के शरीर को देने से मना कर दिया । ऐसे फिर अचानक से बारिश हुई और उनके चेले लखी शाह वंजारा ने अंधेरे की आड़ में गुरु के शरीर और उनके सिर को लेकर गये।
गुरुद्वारा रकाब गंज साहिब
लखी शाह वंजारा ने अपने गुरु के शव को दाह संस्कार करने के लिए उसने अपने घर को जला दिया और साथ ही गुरु का शव भी जल गया । यह जगह आज दिल्ली में गुरुद्वारा रकाबगंज साहिब के रूप में जाना जाता है।
कटे शीश का दाह संस्कार
गुरु तेग बहादुर के कटे हुए सिर को उनके दूसरे चेले जैता द्वारा अंनदपुर साहिब ले जाया गया । जैता गुरुजी के शीश के साथ गोविंद राय के समक्ष पहुंचे और वहां पर गुरु तेग बहादुर के छोटे बेटे गुरु गोविंद सिंह ने अंतिम संस्कार किया।
गुरुद्वारा शीश गंज का निर्माण
11 मार्च 1783 में सिख मिलिट्री के लीडर बघेल सिंह अपनी सेना के साथ दिल्ली आए उन्होंने दीवान ए आम पर कब्जा कर लिया इसके बाद मुगल बादशाह शाह आलम द्वितीय ने सिखों के ऐतिहासिक स्थान पर गुरुद्वारा बनाने की बात मान ली और उन्हें गुरुद्वारा बनाने के लिए रकम दी 8 महीनों के समय के बाद 1783 में शीश गंज द्वारा बना इसके बाद कई मुस्लिमों और सिक्कों में इस बात का झगड़ा रहा कि इस स्थान पर किसका अधिकार है लेकिन ब्रिटिश राज्य ने सिखों के पक्ष में निर्णय दिया फिर उसके बाद गुरद्वारा शीश गंज का 1930 में पूर्ण व्यवस्थित हुआ।
इस गुरुद्वारे की मुख्य सरचना इसका विशाल व खुला हाॅल है गुरु ग्रंथ साहिब को एक बड़े लाल रंग के कपड़े में कवर के हाॅल के मध्य में कास्य छत के नीचे रखा जाता है यहां पर एक बरगद का पेड़ है जहा पर महान गुरु शहीद हुए थे ।यहां गुरुद्वारे के भीतर एक ढांचा भी है जहा पर गुरुजी को कैदी के रूप में रखा गया था।
गुरु तेग बहादुर जी की याद में उनके शहीद स्थल पर गुरुद्वारा बना जिसका नाम "गुरद्वारा शीश गंज साहिब" है।
गुरु तेग बहादुर जी की बहुत सी संरचना ग्रंथ साहब के महला 9 में संग्रहीत हैं उन्होंने शुद्ध हिंदी में सरल और भावयुक्त "पदों" और "साखी" की रचनाएं कि उनके आदित्य बलिदान ने देश की "सर्व धर्म सम भाव" की संस्कृति को सुदृढ़ बनाया और धार्मिक , सांस्कृतिक, वैचारिक स्वतंत्रता के साथ निर्भयता से जीवन जीने का मंत्र दिया।
BY MOHIT KUMAR
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Nyc
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