क्या आप जानते ?🤷♂️ उस वृक्ष के बारे में जहां पर महर्षि शुकदेव कहानी सुनाया करते थे😇! क्या आप जानते हैं🤷♀️? वह कौन था जिसको महर्षि शुकदेव ने मुक्ति दिलाई थी🤔! क्या आपको पता है😇? वह वृक्ष आज भी ऐसा का ऐसा ही है😳! इन सभी के प्रश्नों के उत्तर जाने और यहां का इतिहास देखें।
क्या आपको पता है 🤔?5100 वर्ष पुराना वटवृक्ष शुक्रताल कहां पर है 😇🤷♂️🤷♀️!
यह शुक्रताल भारत के राज्य उत्तर प्रदेश के जिले मुजफ्फरनगर के अंतर्गत आता है जोकि मुजफ्फरनगर से लगभग 28 किलोमीटर दूरी गंगा घाट के किनारे पर है और दिल्ली से 176 किलोमीटर दूर है।इस शुक्रताल के अखिरी गांव मोरना पडता है व मोरने से 5 किलोमीटर दूर पडता है
5100 वर्ष पुराने वटवृक्ष (बरगद के पेड़) शुक्रताल का इतिहास:-
वह शुक्रताल जहां पर ऋषि शुकदेव ने गंगा घाट के किनारे ने अक्षयवट वृक्ष( बरगद का पेड़) के नीचे कहानी व भगवत गीता सुनाया करते थे जिसमें एक समय में महाभारत के अर्जुन के पौते व अभिमन्यु के पुत्र राजा परीक्षित को कहानी सुनाकर उनको मोक्ष की प्राप्ति दिलाई थी।
राजा परीक्षित का ऋषि मुनि शमीक के पुत्र ऋषि श्रृंगी का श्राप
महाभारत में पांडव ने राज-पात को त्याग कर अर्जुन के पोते व अभिमन्यु के पुत्र को राजगद्दी सौपकर चले गए थे और तब हस्तिनापुर का राजा परीक्षित बना था।
ऐसा कहा जाता है एक दिन राजा परीक्षित जंगल में शिकार करने के लिए गए थे जिसमें वह जंगल में जाकर उनको भूख-प्यास लगी थी और वह तलाश करते करते ऋषि मुनि शमीक के आश्रम में पहुंच गए जहां पर वह तपस्या की समाधि में थे। राजा परीक्षित ने ऋषि मुनि शमीक से कई बार बोलकर पानी के लिए अनुरोध किया लेकिन ऋषि मुनि शमीक की तरफ से कोई भी जवाब नहीं मिलने पर राजा परीक्षित क्रोध में आकर अपने धनुष से मरे हुए सांप को ऋषि मुनि शमीक के गले में डाल दी। जब यह ऋषि शमीक के पुत्र ऋषि श्रृंगी को पता चली तो उन्होंने राजा परीक्षित को क्रोध में श्राप दे दिया कि आज से 7 दिन बाद सांप(तक्षक) के डसने से तुम्हारी मृत्यु हो जाएगी।
ऋषि श्रृंगी अपने पिता के गले में मृत सांप को देखकर जोर जोर से रोने लगे तभी उनके पिता की समाधि खुल गई और उन्हें इस बारे में पता चला तब ऋषि मुनि शमीक ने अपने पुत्र को समझाते हुए कहा कि राजा के पास सत्ता का बल होता है वह कुछ भी कर सकता है सत्ता का दुरुपयोग व सदुपयोग दोनों कर सकता है लेकिन हम ऋषि मुनि को अपनी साधना का सदैव सदुपयोग करना चाहिए होता है तुम्हें राजा परीक्षित को श्राप नहीं देना चाहिए था।
अक्षय वट वृक्ष के स्थान पर राजा परीक्षित को मुक्ति की प्राप्ति
जब राजा परीक्षित को अपनी गलती का एहसास हुआ और उनके श्राप का पता चला तब अपने पुत्र जनमेजय को राजपाट सौपकर हस्तिनापुर से शुक्रताल गंगा नदी के किनारे बरगद के पेड़ के पास चले गए वहां पर बैठकर भगवान स्वामीनारायण के ध्यान करने लगे तभी वहां महर्षि शुकदेव गुरु जी आए और परीक्षित वह कई अन्य ऋषि के साथ एक मठ पर बैठ गए और परीक्षित के साथ कई अन्य ॠषियो को भी भगवत कथा सुनाई और राजा परीक्षित को मोक्ष की प्राप्ति दिलाई।
अक्षयवट वृक्ष शुक्रताल के रूप में
राजा परीक्षित को मोक्ष की प्राप्ति होने के बाद से ही यह धार्मिक स्थान शुक्रताल के तीर्थ स्थल व पूजनीय स्थल को ऐतिहासिक रूप से माने जाने लगा। इस अक्षयवट वृक्ष( बरगद का पेड़) के दर्शन करने के लिए श्रद्धालु भारत के कोने-कोने व दूर-दूर से आने लगे । आज भी कई ऋषि-मुनियों द्वारा इस स्थान पर कहानी व कथा सुनाई जाती है और कहानी सुनने के लिए दूर-दूर से श्रद्धालु आते हैं कहा जाता है कि इस वट वृक्ष के ऊपर कलावा बांधने से श्रद्धालु की मुराद पूरी होती है।
यही अक्षय वट वृक्ष जो 5100 साल पुराना है श्रद्धालु दूर-दूर से इसी के लिए अधिकतर देखने आते हैं क्योंकि यह बरगद के पेड़ की जड़ व पत्ते काफी दूर तक अभी भी वैसे के वैसे ही हैं बरगद के पेड़ का हिस्स पूरे मंदिर परिसर में फैला हुआ है।यह बरगद का पेड़ कभी सूखता नहीं है अन्य पेड़ आज के समय में पतझड़ के समय पर झड़ जाते हैं लेकिन यह अक्षय वट वृक्ष आज भी पूरे पेड़ पर पत्ते मिलेंगे।
इस वट वृक्ष व मंदिर का परिसर
इस मंदिर में प्रवेश करने के बाद आपको थोड़ी दूर पैदल चलकर मंदिर मिलेगा जिसमें आपको एक बहुत बड़ा वटवृक्ष बरगद का पेड़ मिलेगा उसकी ठीक बराबर में ही श्री शुकदेव व राजा परीक्षित की मूर्ति का एक छोटा सा मंदिर मिलेगा साथ ही वहां पर श्री शुकदेव जी का चरण दास मंदिर भी मिलेगा। साथ इसके यहां पर भगवत गीता कथा भवन भी मिलेगा जहां पर अब भी भगवत गीता कथा सुनाई जाती है। उसके हल्के से दूर पर ही भगवान महादेव का शिवलिंग है भगवान हनुमान जी का मंदिर भी मिलेगा।
इस वट वृक्ष मंदिर के आस-पास अन्य मंदिर व स्थल
1. मोरना गांव:-
यह गांव अपने आप में ऐतिहासिक स्थल के रूप में जाना जाता है। जब भी आप सब शुक्रताल के लिए जाते हो तो आपको अखिरी गांव और शुक्रताल के जाने के लिए सबसे पहला स्थल मोरना गांव मिलेगा। जो अपने आप में एक ऐतिहासिक स्थल के रूप में जाना जाता है। कहते हैं कि जब राजा परीक्षित के लिए वैद्यराज उपचार करने के लिए जा रहा था तो उस समय तक्षकनाग ने वैद्यराज को धन का लोभ देकर उसको वहां से वापस भेज दिया था जिससे उसको राजा परीक्षित का उपचार करने से रोक दिया था और वह वैद्यराज वहां से मोड़ कर वापस चला गय तब से इस जगह का नाम मोरना रख दिया गया।
2. गंगा घाट:
3. हनुमान धाम:
4. हनुमध्दाम नक्षत्र वाटिका
5. गणेश धाम
5. शिव धाम :
गंगा नदी के किनारे पर स्थित शिव धाम मंदिर बना हुआ है । इस मंदिर के प्रवेश द्वार को लाल बलुआ पत्थर से बनाया गया है इस मंदिर के अंदर काफी जगह भरा- भरा पेड़ व पौधे लगाए गए हैं। इस मंदिर के अंदर पर्यटकों के लिए भोजनालय भंडारा भवन भी बनाया गया है
शिव धाम मंदिर में एक बड़ी महादेव की प्रतिमा मूर्ति बनाई गई है। और इस प्रतिमा के बराबर ही मंदिर में भगवान महादेव व पार्वती उनके साथ गणेश की मूर्ति स्थापित की गई है।
6. मां शाकुंभरी दुर्गा धाम
शिव धाम के कुछ दूरी पर ही मां शाकुंभरी दुर्गा धाम मंदिर हैं जिसमें मां दुर्गा की काफी ऊंची प्रतिमा मूर्ति स्थापित की गई है मंदिर मां दुर्गा की ऊंची प्रतिमा के नीचे एक गुफा है जिसमें माता देवी की मूर्ति स्थापित हैं वह कलाकृति की गई है और उसके अंदर छोटी-छोटी कई , मूर्ति बनाई गई है
इसी मंदिर के अंदर भगवान शिव की शिवलिंग की ऊंची प्रतिमा बनाई गई है शिवलिंग के नीचे एक गुफा है जिसमें भगवान शिव के शेषनाग में शिवलिंग स्थापित है जहां पर जल अभिषेक किया जाता है।
7. गुरुद्वारा
मां शाकुंभरी माता धाम के कुछ दूरी पर है गुरुद्वारा द्वारा बनाया गया है जो अपने आप में पर्यटकों को अपनी और आकर्षित करता है। यह गुरुद्वारा गुरु रविदास जी के लिये 7 मंजिला बनाया गया है। इसमे सबसे ऊपर छतरी मे सोने की
:: इन सबके अलावा यहां पर कई ऐसे धाम व मंदिर बने हुए हैं जो पर्यटको के लिए काफी आकर्षित दर्शन स्थल है। यहां पर कई ऐसे गुरुकुल व अध्यात्मिक गुरुकुल है जहां पर शिक्षा दी जाती है। और यहां पर वर्ष के प्रत्येक दिन काफी श्रद्धालु दर्शन करने के लिए भारत के कोने कोने से अपने साधन तथा अन्य गाड़ी के द्वारा यहां पर गंगा स्नान और मंदिरों के दर्शन करने के लिए आते हैं।
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