ज्वाला देवी मन्दिर के बारे में (About of Jwala Devi Temple

क्या आप जानते हो? मां ज्वाला देवी मन्दिर का इतिहास क्या है?क्या आप जानते हो? कि इस मंदिर को मां ज्वाला देवी मन्दिर क्यों कहा जाता है? क्या आपको पता है?इस मंदिर में क्या क्या चमत्कार हुए थे।क्या आप जानते हो इस मंदिर में दूर दूर से लोग यंहा क्यों आते है। चलिए मां ज्वाला देवी मंदिर के इतिहास से इन सभी सवालों के जवाब जानते है:- 


आप सभी ने माता सती के बारें में तो जरुर सुना होगा जो भगवान शिव की पहली पत्नी थी और जो राजा दक्ष की पुत्री थी। जब राजा दक्ष ने यज्ञ करवाया  जिसमें सबको बुलाया लेकिन भगवान शिव और माता सती को नहीं बुलाया था क्योंकि वह उनको अपने बराबर नहीं मानते थे लेकिन माता सती उसके बाद भी बिन बुलाए उस यज्ञ में शामिल होने चली गई जिसके कारण माता सती के बिन बुलाए जाने पर राजा दक्ष ने उनकी और भगवान शिव का काफी अपमान किया था जिसके कारण माता सती हवन कुंड में कूद गई थी और भगवान शंकर ने यज्ञ  से सती के पार्थिव शरीर को निकाल कर कंधे पर उठा लिया था और दुखी हुए इधर उधर घूमने लगे थे तब संपूर्ण विश्व को प्रलय से बचाने के लिए जगत के पालनकर्ता भगवान विष्णु ने चक्र से सती के शरीर को काट दिया था जिसके कारण उनके शरीर के टुकड़े 51 जगहों  पर गिरे थे जो कि शक्तिपीठ के नाम से जाने जाते हैं  उन्ही शक्तिपीठों में से एक मां ज्वाला देवी मंदिर कहां है। 


यह ज्वाला देवी मंदिर कहां पर स्थित है

यह मंदिर भारत के राज्य हिमाचल प्रदेश का जिला कांगड़ा की ज्वालामुखी क्षेत्र में पड़ता है। यह मुख्य जिला कांगड़ा से 30 किलोमीटर दूर पड़ता है और दिल्ली से लगभग 420 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। 

यह मंदिर 557.66 मीटर ऊपर पहाड़ पर स्थित है। 

इस मंदिर का इतिहास

इस मंदिर का इतिहास कई कई युगों व  हजारों साल पुराना माना जाता है क्योंकि इस मंदिर में माता सती की शरीर के टुकड़ों का एक अंश यहा गिरा था जो कि ऊपर बताया गया कि 51 जगह माता सती के शव के टुकड़ों गिरे थे तो उन्हीं में से एक अंश यहां पर गिरा था। जिस जिस स्थान पर यह अंश गिरे वहा वहा शक्ति पीठ की स्थापना की गई।जिसके कारण यहां भी शक्ति पीठ की स्थापना की गई और यह मंदिर माता सती के शक्तिपीठ का मंदिर कहलाया जाता है। 

पुरानी कथा अनुसार यहां का इतिहास

इस मंदिर का इतिहास यहां के लोगों द्वारा दो घटनाओं के पर आधारित माना जाता है

1. माता सती के अंश का गिरना

पौराणिक कथा अनुसार जब भगवान शिव का विवाह प्रजापति दक्ष की पुत्री माता सती से हुआ था उस समय की यह घटना मानी जाती है। जैसे ऊपर बताया गया कि जब राजा दक्ष ने यज्ञ करवाया  था और माता सती के बिन बुलाए जाने पर राजा दक्ष ने उनकी और भगवान शिव का काफी अपमान किया था जिसके कारण माता सती हवन कुंड में कूद गई थी और भगवान शंकर ने यज्ञ  से सती के पार्थिव शरीर को निकाल कर कंधे पर उठा लिया था और दुखी हुए इधर उधर घूमने लगे थे तब संपूर्ण विश्व को प्रलय से बचाने के लिए जगत के पालनकर्ता भगवान विष्णु ने चक्र से सती के शरीर को काट दिया था जिसके कारण उनके शरीर के टुकड़े 51 जगहों  पर गिरे थे। उन्हीं 51 में से एक माता  सती की यहां पर जीभा गिरी थी जोकि "सती की जीभ ज्वालाजी (610 मीटर) पर गिरी" और मां देवी 9 छोटी लपटों के रूप में प्रकट हुई जो सदियों पुरानी चट्टान में दरारों के माध्यम से जहां पर मां ज्वाला  नीली ज्योति जलती रहती है।शक्तिपीठ के रूप में इस मंदिर की स्थापना की गई। और भगवान शिव शंकर भैरव के रूप में यहां पर स्थापित हुए थे। 

2. दूसरी कथा  भगवान गोरखनाथ के अनुसार

कुछ लोगों का ऐसा भी मानना है कि यहां पर भगवान गोरखनाथ और उनकी माता रहा करती थी प्राचीन काल में माता के एक भक्त गोरखनाथ अपनी मां के साथ यहां रहते थे और उनको भूख लगी होगी और उन्होंने अपनी    माता से बोला तो उनकी माता ने आग जलाकर पानी गरम करने के लिए रख दिया तब तक वह भिक्षा लेने चला गया और फिर कहा जाता है कि वह  भिक्षा लेकर कभी आया ही नहीं जिससे आग वह जलती ही रही जिसके कारण यहां पर हमेशा  ज्योत जलती रहती है। इसी कारण इस मंदिर का नाम मां ज्वाला देवी पड़ा। 

लेकिन दोनों कथाओं में सबसे ज्यादा मान्यता माता सती के अंश गिरने की ही मानी जाती है।


इस मंदिर की स्थापना व निर्माण

ऐसा कहा जाता है कि सदियों वर्ष पहले व प्राचीन काल में  एक चरवाहे ने पाया उसकी एक गाय  हमेशा बिना दूध के रहती है। उन्होंने इसका कारण जानने के लिए गाय का पीछा किया।  उसने देखा कि एक लड़की जंगल से गाय का दूध पीती हुई निकल रही थी, और फिर प्रकाश की एक चमक में गायब हो गई।  ग्वाला ने राजा भूमि चंद के पास गया और उसे कहानी सुनाई।  राजा को इस कथा के बारे में पता था कि इस क्षेत्र में सती की जीभ गिरी थी।  राजा ने बिना किसी देरी के उस पवित्र स्थान को खोजने की कोशिश की।  फिर, कुछ साल बाद, ग्वाला राजा के पास रिपोर्ट करने के लिए गया कि उसने पहाड़ों में एक ज्वाला जलती हुई देखी है। राजा ने वह स्थान पाया और पवित्र ज्वाला के दर्शन किए।  उसने वहां एक मंदिर बनवाया और पुजारियों को नियमित पूजा में शामिल करने की व्यवस्था की।  ऐसा माना जाता है कि पांडवों ने बाद में आकर मंदिर का जीर्णोद्धार कराया। राजा भूमि चंद ने सबसे पहले मंदिर का निर्माण करवाया था।


इस मंदिर का संपूर्ण निर्माण सन् 1835 में महाराजा रणजीत सिंह और राजा संसार चंद ने इसका पुननिर्माण करवाया था।


इस मंदिर के पास की ऐतिहासिक घटना व चमत्कार 

विद्वानों के अनुसार यहां पर कई ऐसे घटना  घटी अथार्त चमत्कार हुए है जिसके कारण यहां की मान्यता दूर-दूर तक फैली और भक्तों के मन में मां के लिये श्रद्धा और विश्वास और भी गहरा हुआ। इन्ही चमत्कारों में कुछ चमत्कार है:-

1. ज्वाला(ज्योति) के रूप में पूजा


इस मंदिर की सबसे बड़ी मान्यता और चमत्कार यह है कि यहां की पूजा मूर्ति के रूप में नहीं एक दिव्य ज्योति के रूप में की जाती है। और यह ज्योति ना किसी पानी से जलती और न किसी तेल से जलती है। यह दिव्य ज्योति 9  रूपों में विभाजित और विराजमान है। यह 9 दिव्य ज्योति के नाम है:-


 1.महाकाली, 2.अन्नपूर्णा, 3.चंडी, 4.हिंगलाज भवानी, 5.विंध्यावासनी, 6.महालक्ष्मी  7. सरस्वती  8.अंबिका और 9. अंजना देवी के रूप में विराजमान है। 
माँ ज्वाला ज्योति 



2. भक्त ध्यानु के घोड़े को जिंदा करना

ऐसा माना जाता है कि माता के भक्त ध्यानु और इनके साथ एक बड़ा भक्त जनों का जत्था हर वर्ष माता रानी के दर्शन करने के लिए जाते थे। 1 दिन राजा अकबर ने भक्त ध्यानु को और उनके जत्थे को रोककर पूछा कि तुम कहां जा रहे हो तो उन्होंने कहा कि हम माता ज्वाला देवी के दर्शन करने और भक्ति करने जा रहे हैं। तब राजा अकबर ने भक्त ध्यानु के घोड़े की गर्दन काटकर कहा कि तुम्हारी भक्ति इतनी सच्ची और माता में इतनी शक्ति होगी तो इसका सिर जोड़ देगी। 

तब भक्त ध्यानू ने अकबर से इसके लिए समय मांगा और अपने घोड़े की  गर्दन और धड़ को सुरक्षित रखने के लिए बोला। अकबर ने इनकी बातें को स्वीकार किया और घोड़े के गर्दन उधर को सुरक्षित रखा। भक्त ध्यानु मां के दरबार में आया और स्नान करने के बाद पूजा और रात भर जागरण किया। प्रातः काल माता से हाथ जोड़कर प्रार्थना की और बोला हे मां अब मेरी लाज आपके हाथों में हैं और इतना बोलते ही मां के चरणों में अपनी शीश काटकर भेंट कर दिया। ज्वाला माता ने अपने भक्त की लाज रखते हुए भक्त ध्यानु के शीश को  जोड़कर और उनके घोड़े की गर्दन को भी  जोड़ दिया। 

3. अकबर के ज्वाला को बुझाने का प्रयास 

जब राजा अकबर को भक्त ध्यानु के घोड़े की गर्दन जोड़ने का समाचार मिला तब राजा अकबर ने अपनी सेना के साथ मां ज्वाला के दरबार चल पड़ा।दरबार में पहुंचकर राजा अकबर ने मां के दरबार को क्षति पहुंचाने और मां की परीक्षा लेने का प्रयास किया जिसमें उन्होंने अपने सैनिकों से मां ज्वाला के परिसर में ज्योत के ऊपर लोहे की चादर रखकर  ज्योत को बुझाने का प्रयास किया लेकिन इसमें वह विफल रहे। इसके बाद राजा अकबर ने अपनी सेना से मां ज्वाला के ज्योत के ऊपर पानी डलवाकर बुझाने का प्रयास किया लेकिन वह इसमें भी पुनः विफल रहे। ऐसा कहा जाता है कि इसके बाद भी राजा अकबर ने एक नहर खुदवा कर उसकी पानी को इस तरफ मोड़ने का प्रयास किया। लेकिन इसमें भी वह मां की ज्योत को बुझा नहीं पाया और विफल रहा। 

4. राजा अकबर के अभिमान को तोड़ा।

जब राजा अकबर सभी प्रयासों से विफल हो गया तो उसने अपनी हार को स्वीकार किया और मान लिया कि यहां पर कोई न कोई शक्ति  विराजमान है और अपने अभिमान के रूप में सोने का छत्र चढ़ाया लेकिन मां ज्वाला देवी ने उनके सोने के छात्र को स्वीकार नहीं किया और वह  सोने का छत्र नीचे गिर कर किसी अन्य पदार्थ में परिवर्तित हो गया। यह छात्र आज भी मंदिर परिसर में रखा हुआ है। 

अकबर द्वारा चढ़ाया गया 

5. ब्रिटिश काल के समय

जब देश ब्रिटिश शासन के अधीन था उस समय भी ब्रिटिश सरकार ने इस ज्वाला के जलने का रहस्य जानने के लिए यहां पर जमीन को खोदा और काफी कोशिश की लेकिन उनके हाथ कुछ नहीं लगा। 

6. भूगर्भ वैज्ञानिक के द्वारा कोशिश

देश के आजाद होने के बाद भी कई भूगर्भ वैज्ञानिकों ने तम्बू गाड़कर वहा बैठकर ज्वाला की जड़ तक पता लगाने के लिए काफी कोशिश की गई लेकिन उनको भी कुछ जानकारी नहीं मिली। 

अत: इन सभी चमत्कार व घटना के बाद भक्तजनों का मां ज्वाला देवी के लिए विश्वास और अधिक मजबूत हुआ और काफी श्रद्धालु हर वर्ष मां के दर्शन करने के लिए दूर-दूर से आते हैं। 


ज्वाला देवी मंदिर की वास्तुकला

 ज्वाला देवी मंदिर वास्तुकला इंडो-सिख शैली में देखने को मिलती है। यह एक लकड़ी के चबूतरे पर बनाया मंदिर है और शीर्ष पर एक छोटे से गुंबद के साथ चार कोनों वाला दिखाई देता है। मंदिर में एक केंद्रीय वर्गाकार गड्ढा है जहाँ अनन्त लपटें जलती हैं। आग की लपटों के सामने गड्ढे हैं जहां फूल और दूसरे प्रसाद रखे जाते हैं। मंदिर का गुंबद और शिखर सोने से ढका हुआ देखने को मिलता है। उसको महाराजा रणजीत सिंह ने उपहार में भेट दिया था। उसके निर्माण में महाराजा खड़क सिंह या रणजीत सिंह के पुत्र ने चांदी का उपहार दिया था।

उसका उपयोग मंदिर के मुख्य द्वार को ढकने किया गया था। मंदिर के सामने बनी पीतल की घंटी नेपाल के राजा ने भेंट चढ़ाई थी। मंदिर सुनहरे गुंबद और हरियाली में चमकते चांदी के दरवाजों से और भी सुंदर दिखता है। मुख्य हॉल के केंद्र में संगमरमर से बना बिस्तर है वह चांदी से सजाया गया है। रात में देवी की आरती के बाद कपड़े और सौंदर्य प्रसाधन कमरे में  रखे जाते हैं। कमरे के बाहर महादेवी, महाकाली, महासरस्वती और महालक्ष्मी की मूर्तियाँ बनी हैं। गुरु गोविंद सिंह द्वारा दी गई गुरु ग्रंथ साहिब की पांडुलिपि भी कमरे में सुरक्षित है।




 इस मंदिर के पास ही अन्य मंदिर

इस मंदिर के पास ही कुछ अन्य मंदिर भी स्थापित है जो जो काफी श्रद्धालु इन मंदिरों में जाकर भी दर्शन करते हैं। 

1.मा तारिणी मंदिर

ज्वाला माता मंदिर के कुछ ऊपर की ओर चढ़ाई चढ़ने पर माता रान मंदिर है जिसमें माता तारिणी की मूर्ति स्थापित है। 
           मा तारिणी मंदिर



2. भैरव बाबा मंदिर


मा तारिणी मंदिर से कुछ ही दूरी पर बाबा भैरवनाथ मंदिर स्थापित है यह मंदिर आपको हर शक्तिपठ मंदिर के पास मिलेगा, जिसमें भगवान शिव जी वीरभद्र के रूप में विराजमान रहते हैं और शक्तिपीठ की रक्षा करते हैं। 

3. रघुनाथजी मंदिर व टेढ़ा मंदिर

सबसे ऊपर और पहाड़ों पर स्थित यह मंदिर रघुनाथ जी मंदिर व टेढ़ा मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है इस मंदिर की चढ़ाई काफी ऊंची मानी जाती है और इस मंदिर भैरव बाबा मंदिर से और ऊपर की ओर चढ़ाई होती है। 

4. अष्टभुजा मंदिर
5. चौमुख मंदिर
6. बगल मुखी मदिर
7. राधा कृष्णा मंदिर 

8. प्राचीन शिव मंदिर अम्बिकेश्वर महादेव मंदिर व् संतोषी माता मंदिर

यहाँ मंदिर भी प्राचीन माना जाता है सभी श्रद्धालु यहाँ पर भी दर्शन करने के लिए आते है 


इस मंदिर परिसर के दर्शन  और आरती करने का समय 

इस ज्वालाजी मंदिर का  खुलने और यहां होने वाले दर्शन का समय मौसम के अनुसार खुलने और बंद होने के समय में बदलाव होता है। 

1. गर्मियों के मौसम में 

मंदिर सुबह 5 बजे से रात 10 बजे तक खुलता है।

2. सर्दीयो के मौसम में 

सुबह 6 बजे से रात 9 बजे तक दर्शन कर सकते है। 

गर्भगृह के साथ साथ मंदिर परिसर में पर्यटक चतुर्भुज मंदिर और गोरख डिब्बी जैसे छोटे मंदिर के दर्शन कर सकते हैं।

आरती का समय

 मंगल आरती - गर्मी: 5 से 6 सर्दी में 6 से 7

 पंजुपचार पूजन - मंगल आरती के बाद

 भोग आरती - 11 से 12

 शाम की आरती -  7 से 8

 शयन आरती - 9 से 10

यहाँ के लिए यातायात के साधन

आप यहां के लिए सड़क मार्ग वायु मार्ग व रेल मार्ग के माध्यम से  आ सकते हैं

1. रेल मार्ग के माध्यम से

यहां का नियर रेलवे स्टेशन ज्वालामुखी रोड है लेकिन यहां पर कोई भी एक्सप्रेस ट्रेन नहीं आती यहा सिर्फ लोकल ट्रेन आती है। इसके अलावा जहां का नियर रेलवे स्टेशन जालंधर और पठानकोट पड़ता है। दौलतपुर रेलवे स्टेशन यहां के नजदीकी पड़ता है। 



पठानकोट से ज्वालामुखी की दूरी 114 किलोमीटर
जालंधर से ज्वालामुखी की दूरी 127 किलोमीटर
होशियारपुर से ज्वालामुखी की दूरी 71 किलोमीटर
दौलतपुर चौक से ज्वालामुखी की दूरी 46 किलोमीटर

इन रेलवे स्टेशनों पर उतर कर आप बसटैक्सी के माध्यम से यहां पर आ सकते हो

2. हवाई मार्ग के माध्यम से

यहां का नियर हवाई अड्डा एयरपोर्ट कांगरा का  है जिससे भारत के हर कोने से यहां के लिए आ सकते हो। यह हवाई मार्ग अड्डा ज्वालामुखी मंदिर से 45 किलोमीटर दूरी पर स्थित है। 


3. सड़क मार्ग के माध्यम से

आप यहां पर अपने साधन व बस या टैक्सी  के माध्यम से यहां पर भारत के किसी भी कोने से आ सकते हो। यह shimla-kangra मार्ग से कुछ दूरी पर ज्वालामुखी रोड पर स्थित है। यहां के लिए दिल्ली से सीधी बस सेवा भी उपलब्ध है

यहां के लिए रुकने की व्यवस्था

आप अगर यहां पर  दो या दो से अधिक दिन के लिए घूमने के लिए आते हैं। तो आप यहां पर ठहर भी सकते हैं यहां ठहरने के लिए कई होटल भी है जिसको आप घर से ऑनलाइन बुकिंग भी कर सकते हैं। 

दोस्तों आशा करता हूं आपको मेरे द्वारा दी गई जानकारी काफी अच्छी लगी होगी और आपको अगर जानकारी अच्छी लगी होगी तो इसको अपने दोस्तों में शेयर जरूर करें। 

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