क्या आप जानते हो? उस जगह का इतिहास क्या है? जहा पर सबसे ज्यादा लोग गंगा स्नान करने जाते है, ऐसा वहा क्या है? और क्यों इतनी वह प्रसिध्द जगह है? जिसके के लिए दूर दूर से भक्त और श्रद्धालु स्नान के लिए आते है। इस आर्टिकल में हरिद्वार का इतिहास जानते हैं:-
मां गंगा हरिद्वार |
हरिद्वार तीर्थ के रूप में बहुत पुराना माना जाता है लेकिन इसको नगर के रूप में अब इतना पुराना क्षेत्र नहीं मानते हैं। वर्तमान में यह एक नगर है, जहां पर काफी प्रसिद्ध मंदिर और मां गंगा बहती हुई एक बड़ी नदी के रूप में है। यहां पर काफी ऐसे प्रसिद्ध मंदिर है जो हिंदुओं के कथा अनुसार काफी सदियों पुराने और हिंदुओं के भगवान और आस्था से जुड़े हुए हैं। हरिद्वार आस्था का वह स्थान है जहां पर काफी श्रद्धालु अपने पापों को धोने के लिए और यहां मंदिरों और गंगा मां की आरती के दर्शन करने के लिए भारत के कोने कोने से यहां पर आते हैं।
यह हरिद्वार कहां पर हैं
यह हरिद्वार भारत के राज्य उत्तराखंड के हरिद्वार जिले का एक क्षेत्र हरिद्वार है जो पहाड़ों से घिरे हुए हैं। यह दिल्ली से 213 किलोमीटर दूर है। और उत्तराखंड की राजधानी से देहरादून से 52 किलोमीटर दूर है|
हरिद्वार का इतिहास
हरिद्वार का इतिहास काफी प्रसिद्ध बहुत पुराना प्राचीन काल से भी से भी काफी युगो-युगो पुराना इतिहास रहा है।यहाँ का इतिहास हिंदु धर्म के धार्मिक से जुड़ा हुआ है। इसका इतिहास पौराणिक काल से लेकर प्राचीन काल और मध्यकाल से लेकर वर्तमान काल तक रहा है। जब से इस संसार की रचना हुई और मा गंगा को स्वर्ग से धरती पर अवतरित किया तब से वर्तमान काल तक समयानुसार यहा पर अलग अलग भगवान, ऋषिमुनि, राजाओ, विभिन्न व्यक्तियो द्वारा किसी न किसी कारण हरिद्वार में अपना योगदान व बलिदान दिया, जिससे वहां की हर एक विस्थापित बिंदु(जगह) का इतिहास रहा है और हरिद्वार को एक प्रसिध्द स्थान के रुप में जाना जाता है। वर्तमान में भी यहां पर ऐसी घटना घट चुकी है जो एक ऐतिहासिक रूप में मानी जाती हैं जिसके कारण हरिद्वार का इतिहास काफी प्रचलित और प्रसिद्ध है।
हरिद्वार के इतिहास जानने से पहले हरिद्वार का अर्थ जानते है
हरिद्वार का अर्थ
हरिद्वार "हरि" और "द्वार" शब्द से मिलकर बना है जो कि "हरि" का अर्थ है "ईश्वर" और द्वार का अर्थ है ''दरवाजा रास्ता या द्वार गेट"। इसलिए हरिद्वार का शाब्दिक अर्थ है वह द्वार जो ईश्वर के पास पहुंचा है उसे हरिद्वार कहा जाता है।
महान राजा भागीरथ के रुप में हरिद्वार का इतिहास
हरिद्वार को अगर मां गंंगा के रुप मे देखा जाये तो हरिद्वार का इतिहास राजा भागिरथ के काल में सबसे ज्यादा माना जाता है जिसने मां गगां को स्वर्ग से धरती पर अवतरित कराया। पौराणिक कथाओ के अनुसार सगर के वंंश के राजा दिलिप के पुत्र राजा भागीरथ ने काफी वर्षो तक तपस्या करके मां गंंगा को स्वर्ग से भगवान शिव और विष्णु के द्वारा धरती पर अवतरित किया और जिस मार्ग को वह चलते गये मां गंंगा की धारा उसी मार्ग को जाती रही जिससे मां गंंगा का गंंगोत्री, ऋषिकेश के बाद हरिद्वार में मा गंंगा का अवतरण हुआ और राजा भागिरथ के पुर्वजो की आत्मा को ऋषि मुनि के श्राप से मुक्ति मिली। उसके बाद से ही मां गंंगा में विभिन्न लोग अपनो की अस्थियो को मां गंंगा में विर्सजन करते आ रहे है।
इसलिए यहां पर काफी लाखों करोड़ों श्रद्धालु अपने लोगों की अस्थियां विसर्जन करने के लिए आते हैं जिससे उनकी आत्मा को शांति प्रदान हो सके। इसके साथ ही यह स्थान श्राद्ध के लिए भी काफी प्रसिद्ध माना जाता है काफी श्रद्धालु यहां पर श्राद्ध के दिन यहीं पर पूजा करते हैं और अपने पूर्वजों की आत्मा शांति के लिए पंडितों से पूजा करवाते हैं।
हरिद्वार का इतिहास अन्य प्रसिद्ध स्थानों के रूप में
हरिद्वार का इतिहास हर की पौड़ी के रूप में
हरिद्वार में गंगा जी के तट पर एक प्रसिद्ध घाट है जिसे हर की पौड़ी कहा जाता है ऐसी मान्यता है कि इस स्थान पर हरि यानी भगवान विष्णु जी के चरण पड़े थे जिसके कारण इस स्थान को हर की पौड़ी कहा जाता था विष्णु जी के चरणों
कथा अनुसार कहा जाता है कि राजा स्वेत ने इसी स्थान पर ब्रह्मा जी की घोर तपस्या की थी जिससे ब्रह्मा जी खुश होकर राजा स्वेत से वरदान मांगने को बोलने लगे और तब राजा स्वेत ने वरदान मांगा की जिस स्थान से मैंने तपस्या की उस स्थान को भगवान का नाम दिया जाए तब ब्रह्माजी ने खुश होकर इस स्थान को "हर की पौड़ी" के नाम दिया था तब से इस घाट को हर की पौड़ी के नाम से जाना जाने लगा।
हर की पौड़ी का दूसरे रूप में मान्यता
समुद्र मंथन के समय का हरिद्वार का इतिहास
हिंदू पौराणिक कथा अनुसार असुर और देवताओं ने मिलकर जब समुद्र मंथन किया था और उसके बाद जो अमृत निकला उसकी कुछ बूंदे 4 जगह(हरिद्वार, प्रयागराज, उज्जैन और नासिक) गिर गई थी । हरिद्वार में जिस जगह अमृत की बूंद गिरी थी उस स्थान को "हर की पौड़ी" कहते हैं। और उसी स्थान पर भगवान श्री हरि विष्णु के चरण पड़े थे जिसके कारण इसको "हर की पौड़ी" कहा जाता है।
हरिद्वार का अन्य नाम के रूप में इतिहास
हरिद्वार हमेशा से एक शुद्ध व शांत वातावरण वाला क्षेत्र रहा है जोकि पूर्व में किसी स्वर्ग से कम नहीं होता था। इसी कारण से हरिद्वार को भगवान, ऋषि मुनि, राजा महाराजा और अन्य व्यक्ति अलग-अलग नामों से जानते थे जो कि एक हरिद्वार का अलग ही इतिहास होता था:-
1. कपिला: सतयुग से पूर्व जब गंगा जी का यहां पर अवतरित नहीं हुई थी तब इस जगह (हरिद्वार) को कपिला के नाम से जाना जाता था ऐसा इसलिए था क्योंकि यहां पर प्रसिद्ध ऋषि कपिल मुनि का आश्रम हुआ करता था जिसके कारण हरिद्वार को कपिला कहा जाता था।
2. गंगाद्वार: जब गंगा मां को विष्णु जी के चरणों से यहां पर अवतरित किया गया उस समय इसको हरिद्वार गंगा द्वार कहा जाता था और अब भी इसको गंगाद्वार कहा जाता है क्योंकि यही वह स्थान है जहां से गंगा के अवतरित होने का कारण था। और गंगा हरिद्वार के बाद ही मैदानी क्षेत्र में यही के बाद प्रवेश करती है इसके साथ-साथ इसको महाभारत काल में भी गंगाद्वार के नाम से ही कहा जाता था।
3. ईश्वर का प्रवेश द्वार:- हरिद्वार को ईश्वर का प्रवेश द्वार भी कहा जाता है ऐसा इसलिए कहा जाता है हरिद्वार स्वर्ग के समान और तीनों देव ब्रह्मा विष्णु शिव का स्थान माना जाता है।
4.चार धाम का केंद्र बिंदु : हरिद्वार को चार धाम यात्रा के प्रवेश के लिए भी यहीं से शुरुआत करनी होती है जिसके कारण इसको चार धाम का केंद्र बिंदु या चार धाम का प्रवेश द्वार कहा जाता है।
5. मोक्ष द्वार: हरिद्वार को मोक्ष द्वार के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि यहाँ पर आने वाला हर कोई व्यक्ति मोक्ष को प्राप्त कर लेता है जिसके कारण इसको मोक्ष द्वार भी कहा जाता है।
इसके अलावा हरिद्वार को महा पुराणों काल में मायाक्षेत्र, मायातीर्थ, सप्तस्रोत तथा कुब्जाम्रक आदि नामों से बोला करते थे।
हरिद्वार कुंभ मेले के रूप में
अमृत मंथन के समय अमृत की बूंदें चार जगह में से हरिद्वार में भी गिरी थी। इस कारण से प्रत्येक तीन वर्ष बाद बारी बारी महाकुंभ मेले का आयोजन होता है इस तरह 12 वर्ष में चारों जगह महाकुंभ का आयोजन होकर एक चक्र को पूरा करता है इस महाकुंभ मेले में पुरी दुनिया से करोडो श्रद्धालु, भक्तजन, साधु-संत और पर्यटक यहां इस समारोह को मनाने के लिए एकत्रित होते हैं और गंगा नदी के तट पर शास्त्र विधि से स्नान इत्यादि करते हैं।
हरिद्वार की प्राचीन काल से वर्तमान तक घटना
1700-1800 ईशा पूर्व
इस समय इस क्षेत्र की खोज की गई और ज्ञात हुआ कि इस क्षेत्र पर मनुष्य भी रहते हैं।
322-185 ईशा पूर्व
इस समय मौर्य साम्राज्य का शासन हुआ और उसके बाद में कुषाण शासन के अधीन की आया।
629 ईस्वी
इस समय चीनी यात्री हेनसांग भारत मे आये और इसका वर्णन उसने 'मोन्यु-लो' नाम से किया है। मोन्यू-लो को आधुनिक मायापुरी गाँव समझा जाता है जो हरिद्वार के निकट में ही है। हर्षवर्धन के शासनकाल में हरिद्वार इनके अधीन रहा।
1399 ईस्वी में
इस समय तुर्की के राजा तैमूर ने इस क्षेत्र पर आक्रमण किया और उजाड़ दिया।
16 ईस्वी में
इस समय यह क्षेत्र मुगल शासक अकबर के अधीन आया और उसने इसको लेकर आईन- ए-अकबर में पवित्र शहर के रूप में वर्णित किया।
ब्रिटिश काल के समय
17 वी शताब्दी में जहाँगीर के शासनकाल हरिद्वार का दौरा करने वाले अंग्रेज यात्री थॉमस कोयारट ने हरिद्वार को ईस्ट इंडिया कंपनी के जहाजो द्वारा उपयोग में लाए गए बंदरगाह शहर के रूप मे बताया गया।
सन् 1854 में गंगा नदी पर दो मुख्य बांधो में से एक भीमगोड़ा बांध है
हरिद्वार को नगर पालिका गठन 1868 में किया गया।
देश के आजाद होने के बाद
देश आजाद होने के बाद यह क्षेत्र उत्तर प्रदेश राज्य के अधीन आता था जिसमें उत्तर प्रदेश सरकार ने यहां पर कई छोटे छोटे मंदिरों का निर्माण करवाया और गंगा नदी के तट पर श्रद्धालु के लिए सीढीया और रस्सी लगवाई जिससे यहां पर श्रद्धालु को गंगा स्नान करने में काफी आसानी हुई
हरिद्वार जिला के रूप में
हरिद्वार जिला, सहारनपुर डिवीजनल कमिशनरी के भाग के रूप में 28 दिसम्बर 1988 को अस्तित्व में आया। 24 सितंबर 1998 के दिन उत्तर प्रदेश विधानसभा ने 'उत्तर प्रदेश पुनर्गठन विधेयक, 1998' पारित किया, अतः भारतीय संसद ने भी 'भारतीय संघीय विधान - उत्तर प्रदेश पुनर्गठन अधिनियम 2000' पारित किया और इस प्रकार 9 नवम्बर 2000, के दिन हरिद्वार भारतीय गणराज्य के 27 वें नवगठित राज्य उत्तराखंड (तब उत्तरांचल), का भाग बन गया।
हरिद्वार में प्रसिद्ध धार्मिक स्थल और घूमने लायक जगह
हरिद्वार वह प्रसिद्ध स्थान है जिसमे मनुष्य के साथ ही देव भी आने के लिए तत्पर रहते है और त्रिदेव व ऋषि मुनियों का हमेशा निवास रहा है। हरिद्वार प्रकृति और प्रेमियों के लिए एक स्वर्ग के समान साथ ही भारतीय संस्कृति और सभ्यता की बहुरूपदर्शिका प्रस्तुत करता है। हरिद्वार में मां गंगा के अलावा काफी ऐसे ऐतिहासिक और धार्मिक स्थल है :-
1. हर की पौड़ी
हरिद्वार मां गंगा के लिए सबसे ज्यादा प्रसिद्ध स्थल है और गंगा में स्नान करने के लिए ही काफी दूर-दूर से श्रद्धालु यहां पर आते हैं इसी उसमें एक जगह है जिसको "हर की पौड़ी" कहा जाता है यह वह जगह है जहां पर "अमृत की बूंदे" गिरी थी और भगवान श्री हरि कृष्ण के पाव यहां पर पड़े थे।इसी के कारण ही इसको "हर की पौड़ी" कहा जाता है। जब भी कोई श्रद्धालु यहां पर स्नान के लिए आते है। कोई भी श्रद्धालु पहले "हर की पौड़ी" से ही स्नान करने के लिए कोशिश करते है क्योंकि यह कहा जाता है कि यहां से स्नान करना ऐसा माना जाता है कि ईश्वर को प्राप्त करना व अमृत को ग्रहण करने के समान और शुभ माना जाता है।
2. मां मनसा देवी मंदिर
मां गंगा के साथ ही यहां मां मनसा देवी का भी निवास स्थान कहा जाता है। हर की पौड़ी के पश्चिम दिशा की ओर ऊंचे पर्वत पर मां मनसा देवी विराजमान है और इन्हीं के उसमें यहां पर एक भव्य मंदिर बना हुआ है। जो मां मनसा देवी मंदिर में विराजमान है। पुराणों में कहा जाता है कि यह भगवान शिव की पुत्री है और ऐसा भी कहा जाता है कि इनका जन्म ऋषि कश्यप के मन मस्तिष्क से हुआ था जिसके कारण इनका नाम मनसा देवी पड़ा। मनसा देवी का अर्थ है "मन की देवी"।
इस मंदिर में दो मूर्तियां स्थापित हैं जिनमें से एक पंचभुज और मुख हैं। वही दूसरी मूर्ति में आठ भुजाएं है। ममता की मूर्ति मां मनसा अपने भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण करती हैं। यहां पर आने वाले भक्त अपनी मुराद लेकर एक पेड़ पर धागा बांधते हैं। फिर इच्छा पूर्ण हो जाने के बाद उस धागे को खोलते हैं और फिर मां का आशीर्वाद लेकर चले जाते हैं।
इस मंदिर में जाने के लिए आप पैदल मार्ग या रोपवे के द्वारा भी जा सकते हैं इस मंदिर के दो द्वार गेट हैं।
3.मांं चण्डी देवी मंदिर
मां गंगा और मां मनसा देवी के साथ यहां पर मां चंडी देवी का भी मंदिर है यह मंदिर गंगा तट के पूर्व स्थित शिवालिक श्रेणी के नील पर्वत पर स्थित है। यह गंगा नदी से करीब 6 किलोमीटर दूर पहाड़ पर स्थित है यहां पर जाने के लिए दोनों तरफ से रास्ते बने हुए हैं।
एक पुरानी कथा के अनुसार राक्षस शुभ-निशुभ के सेनानायक चंड-मुंड को यही मारा था। तब से इस स्थान का नाम चंडी देवी पड़ गया था। इस मंदिर की मुख्य प्रतिमा की स्थापना छठी शताब्दी में आदि शंकराचार्य ने की थी। लेकिन इसको मंदिर का रूप कश्मीर के राजा सुचित सिंह ने सन 1929 में बनवाया था।
इस मंदिर के आसपास कई और मंदिर भी है जिसमें संतोषी माता मंदिर, हनुमान जी का मंदिर, व अंजना देवी माता का मंदिर भी काफी भव्य बना हुआ है।
4. वैष्णो देवी मन्दिर
हर की पौड़ी से करीब 1 किलोमीटर दूर भीमगोड़ा में वैष्णो देवी का मंदिर है जो कि काफी भव्य रुप में बना हुआ है यह मंदिर जम्मू कश्मीर के प्रसिद्ध वैष्णो देवी मंदिर की गुफा के अनुकूल ही बनाया गया है।
5. भारत माता मंदिर
वैष्णो देवी मंदिर के थोड़ी ही दूर भारत माता मंदिर है जो बहुमंजिला मंदिर के रूप में है इस मंदिर का निर्माण स्वामी सत्यमित्रानंद गिरी के द्वारा हुआ था और तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी द्वारा दीप प्रज्वलित कर इसका लोकार्पण हुआ था यह मंदिर काफी प्रसिद्ध है और इस मंदिर में मंजिलो पर सुर मंदिर, मातृ मंदिर, संत मंदिर, सती मंदिर, भारत दर्शन के रूप में मूर्तियां 14 चित्रों तथा चित्रों के माध्यम से भारत की बहुआयामी छवियों को रूपांतरित किया गया है।
6.सुरेश्वरी देवी मंदिर
देवी दुर्गा का यह मंदिर हरिद्वार में 7 किलोमीटर दूर रानीपुर के घने जंगलों में सुरकूट पर्वत पर स्थित है। यह मंदिर देवी दुर्गा, देवी भगवती को समर्पित है यह मंदिर बहुत ही प्राचीन मंदिर है और यह मंदिर राजाजी राष्ट्रीय उद्यान के शांत जंगलों में स्थित है।
7. सप्त ऋषि आश्रम और सप्त सरोवर
यह वह आश्रम है जहां पर मां गंगा असमंजस में हो गई थी कि अपनी धारा को किस और प्रभावित करना है तब गंगा सात धाराओं में विभाजित होकर बह गई थी। इस कारण से इसको सप्त सरोवर व सप्त ऋषि आश्रम कहा जाता है। यहां मुख्य मंदिर शिव जी का है और उसी की परिक्रमा में सप्त ऋषि के छोटे-छोटे मंदिर दर्शनीय हैं यह स्थान प्रकृति, शोभा से परिपूर्ण है। इस आश्रम में सप्त ऋषियों के नाम पर 7 कुटिया बनाई हुई है जिनमें आश्रम के लोग रहते हैं।
8. कनखल
कनखल को हरिद्वार के उप नगरी कहा जाता है यह हरिद्वार से दक्षिण दिशा में 3 किलोमीटर दूर स्थित है जो आबादी व बाजार वाला क्षेत्र है। यह सबसे प्राचीन तीर्थ स्थल है विभिन्न पुराणों में इसका उल्लेख भी है ।
इस स्थान पर गंगा की धारा पुनः मुख्यधारा में मिल जाती है महाभारत के साथ-साथ अनेक पुराणों में कनखल में गंगा विशेष पुण्य दायिनी मानी गई है इसलिए गंगा का यहां विशेष महत्व माना जाता है और ऐसा भी कहा जाता है कि कनखल में ही दक्ष ने यज्ञ किया था जहां पर सती भस्म हो गई थी।
हरिद्वार का भौगोलिक क्षेत्र
हरिद्वार का कुल क्षेत्रफल 2360 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है जिसमें मैदानी क्षेत्र से लेकर पहाड़ी क्षेत्र तक का शामिल किया हुआ है। गंगा का पानी, अधिकतर वर्षा ऋतु, जब कि ऊपरी क्षेत्रों से मिटटी इसमें घुलकर नीचे आ जाती है इसके अतिरिक्त माँ गंगा एकदम स्वच्छ व ठंडा होता है। यह अक्षांश और देशांतर क्रमशः 29.58 डिग्र्री उत्तर और 78.13 डिग्री पूर्व में है। समुद्र तल से उंचाई 249.7 मीटर है। हरिद्वार उत्तराखंड के दक्षिणी पश्चिमी भाग में स्थित है। हरिद्वार का अधिकतर क्षेत्र घने जंगलों से घिरा हुआ है। हरिद्वार की वर्तमान जनसंख्या 2011 के अनुसार 18,90,422 आबादी है। इस जिले के पश्चिम में सहारनपुर, उत्तर और पूर्व में देहरादून, पूर्व में पौड़ी गढ़वाल, दक्षिण में मुजफरनगर और बिजनौर जिले हैं।
हरिद्वार शिक्षा के क्षेत्र के रूप में
यदि हरिद्वार को जिले के रूप में देखा जाए तो हरिद्वार की शिक्षा पूरे भारत में मशहूर मानी जाती है। क्योंकि यहां पर आईआईटी रुड़की भारत की महत्वपूर्ण आईआईटी में शामिल की जाती है। इसकी स्थापना सन 1847 में की गई थी। यह हरिद्वार से 30 किलोमीटर दूर स्थित है।
गंगा नदी के तट पर 4 किलोमीटर दूर कनखल में गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय है जो कि काफी प्रसिद्ध माना जाता है। यह हरिद्वार ज्वाला बाईपास पर स्थित है।
चिन्मय डिग्री कॉलेज हरिद्वार से 10 किमी दूर स्थित शिवालिक नगर में बसा यह हरिद्वार के विज्ञान कोलेजों में से एक है।
विश्व संस्कृत विद्यालय जिसकी स्थापना उत्तराखंड सरकार द्वारा की गई थी। यह विश्व का एकमात्र विश्वविद्यालय है जो पूर्णतः प्राचीन संस्कृत ग्रंथों, पुस्तकों की शिक्षा को समर्पित है। इसके पाठ्यक्रम के अंतर्गत हिन्दू रीतियों, संस्कृति और परंपराओं की शिक्षा दी जाती है और इसका भव्य भवन प्राचीन हिन्दू वास्तुशिल्प पर आधारित है।
पतंजलि विश्वविद्यालय यह भी एक प्रसिद्ध विश्वविद्यालय है जिसमें योग से लेकर विभिन्न सांस्कृतिक ग्रंथों पुस्तकों की शिक्षा दी जाती है इसकी स्थापना बाबा रामदेव ने की है यह प्रसिद्ध योग विद्यालयों में एक है। यह भी कनखल क्षेत्र में ही आता है।
इसके अतिरिक्त यहां पर कई स्कूल और विद्यालय है जिसके द्वारा यहां के बच्चों को शिक्षा प्रदान की जाती है।
हरिद्वार का उद्योग क्षेत्र
हरिद्वार धार्मिक क्षेत्र के साथ ही औद्योगिक क्षेत्र में भी काफी प्रसिद्ध माना जाता है। और यह उद्योग क्षेत्र में काफी तेजी से विकसित भी हो रहा है ।राज्य ढांचागत और औद्योगिक विकास निगम, SIDCUL (सिडकुल), भेल (भारत हैवी इलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड) और इसके सम्बंधित सहायक इस नगर के विकास के साक्ष्य हैं। दवाइयों के उद्योग क्षेत्र में भी यह पर काफी प्रसिद्ध माना जाता है।
यहां के लिए यातायात के साधन
आप यहां हरिद्वार में भारत के किसी भी कोने से हवाई जहाज रेलमार्ग, और सड़क मार्ग के माध्यम से यहां पर आ सकते हैं।
- अगर आप सड़क के माध्यम से आना चाहते हो तो यह दिल्ली देहरादून हाईवे पर स्थित है जोकि एनएचएआई 58 पर स्थित है।
- अगर आप रेल के माध्यम से आना चाहते हैं तो यहां का नियर रेलवे स्टेशन हरिद्वार का है।
- अगर आप यहां हवाई जहाज के माध्यम से आना चाहते हैं तो यहां का हवाई अड्डा जौली ग्रांट है जो देहरादून में स्थित है लेकिन इस पर कुछ इस जगह से हवाई जहाज आने की सुविधा है इसलिए यहां के लिए दिल्ली अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा प्राथमिक माना जाता है। जो कि दिल्ली से लगभग 213 किलोमीटर दूर है
- इसके अतिरिक्त आप कार, टैक्सी या अपने साधन के द्वारा सड़क मार्ग से भी आ सकते हैं। और आप भारत के किसी भी कोने से बस के माध्यम से भी आ सकते हैं जो कि आपको इस हरिद्वार के लगभग 300-400 किलोमीटर के आसपास वाले क्षेत्र से ही आ सकते हैं।
यहां ठहरने की व्यवस्था
हरिद्वार में वैसे तो कई सरकारी संस्था व आश्रम बने हुए हैं लेकिन इसके साथ ही आप यहां पर कई होटलों मे भी रह सकते हैं जो कि यहां पर अलग-अलग रूप में है । आप यहां पर 1 हफ्ते या 2 हफ्ते तक आराम से रुक सकते हैं।
हरिद्वार की संपूर्ण वीडियो देखें दिल्ली से हरिद्वार
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