फिरोज शाह कोटला किले के बारे में (About of Feroz Shah Kotla Fort)

क्या आप जानते हो🤔? फिरोजशाह कोटला का इतिहास क्या है😇? क्या आपको पता है🤔 फिरोज शाह कोटला के अंदर क्या क्या स्थित है😇 जो अब एक खंडहर के रूप में जानी जाती है😳क्या आप जानते हो? 🤔इस फिरोजशाह कोटला में अब भी अशोक मौर्य के निर्मित वस्तु के अवशेष है😳! क्या आप जानते हो🤔? यह फिरोज शाह कोटला किसके शासन में निर्मित हुआ और किस शासक के नाम पर इसका नाम रखा गया🤔? क्या आप जानते हो🤔? वर्तमान में यह कैसा दिखता है? और अब इसके अंदर क्या-क्या अवशेष है? क्या आप जानते हो फिरोज शाह कोटला एक नगर व शहर के रूप में विकसित था! चलिए जानते हैं फिरोज शाह कोटला का इतिहास से इन सभी सवालों के जवाब:-

फिरोजशाह कोटले में स्थित अशोक स्तंभ 


यह कहा पर है

यह भारत की राजधानी दिल्ली के दिल्ली गेट और ITO के बीच स्थित है। 

फिरोज शाह कोटला के बारे में

दोस्तों फिरोज शाह कोटला आज के समय में एक ऐतिहासिक स्थल के रूप में गिना जाता है जिसकी निगरानी भारत सरकार की  संस्था भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग  के द्वारा की जाती है यह फिरोज़ शाह कोटला मध्यकाल और प्राचीन काल के शासकों द्वारा बनवाये गये महल, स्तम्भ और बावली के अवशेष का है। इस ऐतिहासिक स्थल का निर्माण 14 वी शताब्दी के  शासक ने करवाया था। फिरोजाबाद एक विस्तृत शहर था। फिरोज शाह के समकालीन एक इतिहासकार शम्स सिराज अफीफ ने लिखा है कि नगर की इमारतें उत्तरी रिज  पर फिरोज शाह द्वारा बनवाए गए महल या शिकारगाह (जो आज पीर गायब के नाम से जानी जाती हैंतक  फैली थी। दक्षिण दिशा में शहर उस स्थल तक फैला था जिसे आज पुराना किला के नाम से जाना जाता है।फिरोजशाह कोटला शहर का भव्य और आलीशान शाही किला था।इसकी तैमूर जैसे हमलावरों और समकालीन इतिहासकारों ने इसकी इमारतों की खुले दिल से तारीफ की है

यहां बहुत घनी आबादी थीऔर इसकी जनसंख्या लगभग 1,50,000 रही होगी।यह यमुना नदी के तट पर स्थित था जिसमें अब  किले के अवशेष के साथ-साथ जामा मस्जिद,  अशोक स्तंभ और एक बावली के बचे अवशेष भी स्थित है। इस फ़िरोजशाह कोटला के अंदर लोगों की मान्यता है कि यहां पर स्वर्ग से जिन्न का आना जाना लगा रहता है और जहां पर जिन्नो से अपनी मन्नत व इच्छाए  बताने से जिन्न इन्हे पूरा करते है। इस कारण ही इस किले में गुरुवार के दिन ज्यादा भीड़ देखी जाती है और दूर-दूर से लोग अगरबत्ती दिया और अलग-अलग प्रकार के अनाज लेकर मन्नत मांगने आया करते हैं


फिरोज शाह कोटला का इतिहास

फिरोज शाह कोटला का इतिहास मध्यकालीन के 14 वी शताब्दी का है जिसको एक शहर के रूप में स्थापित किया गया था और अन्य जगहों से बने निर्मित चीजों को लाकर यहां पर रखा गया था। यह फिरोज शाह कोटला को यमुना नदी के किनारे बसाया गया था और  इसकी 5 वे शहर के रुप मे स्थापना को गई थी। 

इसकी स्थापना व नाम

इस फिरोज शाह कोटला की स्थापना 14 वीं शताब्दी के तुगलक वंश के तीसरे संस्थापक फिरोज़ शाह तुगलक फिरोज़ाबाद शहर के बीचोंबीच स्थित  राजधानी के रूप में सन् 1354 ईस्वी में की गई थी, जिसको एक शहर के रूप स्थापित करवाया था और इस शहर मे अपना किले और महल बनवाया था। फिरोजशाह तुगलक ने इस किले व शहर का नाम अपने नाम पर फिरोज शाह कोटला और फिरोजाबाद रखा था।

वर्तमान में इस किले का रंग रूप

जिस समय इसका निर्माण किया गया था उस समय यह भव्य रूप में दिखता था यहां तक कि  तैमूर जैसे हमलावरों और समकालीन इतिहासकारों ने इसकी इमारतों की खुले दिल से तारीफ की है। वक्त की मार के अलावा स्वयं इन्सान भी इन्हें खण्डहरों में तब्दील करने के लिए जिम्मेदार रहा है। कालान्तर में दक्षिण (दीनपनाह और शेरगढ़) तथा उत्तर (शाहजहाँनाबाद) में शहरों के निर्माण के लिए यहां से निर्माण सामग्रियों को लूटकर ले जाया गया। विडंबना यह है कि फिरोजाबाद का निर्माण करने के लिए भी सामग्रियों को सिरी, जहांपनाह और लाल कोट जैसे पुराने शहरों से लाया गया था। लेकिन आज के समय में यह केवल एक अवशेष के रूप में और उजड़ा हुआ प्रतीत दिखता है। इसके  अंदर जो भी है वो सब वर्तमान में खंडहर के रूप में दिखाई देता है। यह सब बलवा पत्थर से निर्मित है जो लाल और काले, पीले पत्थरों से मिलकर बनाया गया था


वर्तमान में इस किले के अंदर अवशेष 


फिरोज शाह कोटला  के अंदर वर्तमान में मौजूद जो अवशेष है उनमे, किला,बावली, अशोक स्तंभ, और कई छोटे-छोटे कक्षों का समूह के रूप में किले  के अवशेष मौजूद है। और इसमें एक मस्जिद भी है। इन सभी के कारण यह फ़िरोजशाह कोटला  पर्यटकों के लिए देखने का आकर्षक केंद्र बना है। इसमे बने किले, बावली अशोक स्तम्भ, मस्जिद व अन्य स्थल के बारे में विवरण  इस प्रकार है:-

1. किला

इस किले को कुशक- ए- फ़िरोज़ के नाम से भी जाना जाता है, जो फ़िरोज़ शाह तुगलक (एडी 1351-881) का गढ़ था। उन्होंने इसे दिल्ली के पांचवें शहर फिरोजाबाद में यमुना के तट पर बनाया था, जो हौज- खास से पीर- ग़ैब तक फैला हुआ था। हिंदू राड अस्पताल में बैरिकेन वाले मुख्य द्वार से प्रवेश के साथ पश्चिम की ओर दोनों तरफ एक गढ़ है, गढ़ में महल, पिलारियो हॉल, मस्जिद, एक कबूतर- टॉवर और एक  बावली  शामिल हैं, जो अशोकन का समर्थन करने वाली प्रसिद्ध लंबी पिरामिड संरचना थी खंभा या लाट और जाम! मस्जिद। हालांकि दक्षिणी बाड़े से प्रवेश द्वार को बाद में बंद कर दिया गया है, वहीं उत्तरी बाड़े से एक प्रवेश द्वार के अवशेष भी हैं जो पुराने नदी तट की ओर पूर्व की ओर जाने वाली सीढ़ियों की कई उड़ानें हैं। अधिकांश निर्माण सामग्री फिरोज शाह की है।शाहजहानाबाद बनाने के लिए इस शहर को लूटा गया (1638-48)। फ़िरोज़ शाह तुगलक एक प्रसिद्ध बिल्डर था, जिसके शासनकाल में कई मस्जिदों के निर्माण, सिंचाई तटबंधों के लिए शिकार लॉज और दिल्ली और उसके आसपास के कॉलेजों के निर्माण का श्रेय दिया जाता है।



वर्तमान में फिरोज शाह कोटला चार दीवारों से गिरा हुआ एक खंडहर के रूप में किला बना हुआ है और इनकी दीवारों को बड़े ही कलाकारी से बनाया गया है इस किले में अनगढ़े बलुआ पत्थर से निर्मित यह दीवार है। 

2. बावली(कुआँ) 



किले के अंदर एक बावली भी है जो काफी पुरानी व खंडहर के रूप में मौजूद है। यहाँ के लिए यह बावली या कुआ एक आवश्यक जल स्रोत था। यह एक गोलाकार बनी हुई है। यह दिल्ली की एकमात्र बावली है जो गोलाकार के रूप में है। आम सीढ़ीदार कुओं से भिन्न इसमें जल स्तर तक पहुंचने के लिए सीढ़ियां नहीं थीं। ऊपर से खुले इस वृत्ताकार कुएं में बाल्टी से पानी निकालने के लिए एक पुली लगी थी । इस कुएं के चारों ओर दो मंजिला मकान के प्रमाण उपलब्ध हैं जो अब इस बावली के चारों और ऊंची-ऊंची दीवारें बनी हुई है। इसके पूर्व व पश्चिम में द्वार बना हुआ था जो वर्तमान में पश्चिमी द्वार ही है और वह भी बंद रहता है। यह फिरोज़ शाह कोटला बनाते समय ही इसका निर्माण किया गया था। इसके पूर्व में स्थित एक भूमिगत  नहर बनी हुई है जहां से इस बावली में पानी आता था।इसके अंदर की ओर छोटे छोटे मेहराबदार खिड़कियां बनी हुई है। इसमें एक बार छत है, जो बहुत पहले गिर गई थी, दूसरे स्तर पर टैंक को उजागर कर रही थी। 



3. अशोक स्तंभ (पिरामिडीय ईमारत )


इस अशोक स्तंभ के कारण इस किले की और भी भव्यता बढ़ जाती है इस किले में इस तीन मंजिला इमारत का निर्माण फिरोज़शाह तुगलक ने अशोक स्तंभ को स्थापित करने के लिए करवाया था। मूल रूप से इस स्तंभ की स्थापना महान मौर्य सम्राट अशोक द्वारा अम्बाला के निकट टोपरा में की गई थी, जिस पर अशोक के धम्म संबंधित राजाज्ञाएँ अंकित हैं पत्थर के इस स्तंभ की ऊंचाई 13 मीटर है जिसका व्यास ऊपरी भाग में 65 सेंटीमीटर और निचले भाग में 97 सेंटीमीटर है। फिरोज शाह के आदेश पर इसे काफी प्रयासों के बाद दिल्ली लाकर यहां पुनःस्थापित किया गया था। इसको पुनर्स्थापित करते समय इसके शीर्ष भाग को रंगीन पत्थरों एवं सुनहरे गोलक एवं अर्द्धचन्द्र से आच्छादित किया गया था। आज यह इमारत खण्डहर में तब्दील हो चुकी है, जिसमें मूल रूप से एक रेलिंग और अष्टभुजाकार गुम्बदाकार छतरियां, और प्रत्येक कोने में पत्थर का एक सिंह निर्मित था।

4. मस्जिद



इस किले के अंदर एक मस्जिद भी है ज्यादा पुरानी नहीं है लेकिन इस मस्जिद में आज भी कई लोग गुरुवार के दिन यहां पर नमाज  पढ़ने के लिए आते हैं और कहा जाता कि यहां पर अल्लाह के बंदे आते रहते हैं। इस कारण से ही यहां पर गुरुवार के दिन काफी संख्या में भीड़ दिख जाती है जो कि यहां पर अगरबत्ती जलाकर यहां पर पूजा की जाती है
वर्तमान में किले में मस्जिद के केवल खण्डहर ही बचे हैं जिनको देखकर यह आभास नहीं होता है कि अपने समय में यह काफी शानदार रही होगी। प्रवेश द्वार को नक्काशीदार पत्थरों से सजाया गया था, जिन्हें कालान्तर मे लूट लिया गया था। प्रांगण के बीचोंबीच एक अष्टभुजाकार गुम्बदनुमा ढांचा था जिस पर 'फुतुहत-ए-फिरोज़ शाही' खुदा था, जिसमें सुल्तान द्वारा किए गए महान कार्यों और उपलब्धियों का जिक्र किया गया था। एक सबसे दिलचस्प पहलू निचले स्तर पर बने कमरे हैं। तैमूर इस मस्जिद को देखकर इतना प्रभावित हुआ था कि उसने भारत के शिल्पकारों की मदद से इसी तरह की एक मस्जिद का निर्माण अपनी राजधानी समरकंद में करवाया था

5. महल के खंडहर 

 किले के अंदर अब जो भी स्थित है वह खंडहर में तब्दील हो चुके हैं जो भी पहले महल, दरबार, भवन और कुछ अन्य कक्ष हुआ करती थी वह सब अब खंडहर में तब्दील हो चुकी है। किले की दीवारें 15 मीटर ऊँची है और बाहर की ओर से थोड़ी सी ढालू हैं। ऊँबी मुंडेर या कंगुरे अब लुप्त हो चुके है किंतु तीर चलाने के लिए बने छिद्रों को आज भी देखा जा सकता है। फिरोज शाह के समकालीन इतिहासकारों ने किले में मौजूद कई भवनों का उल्लेख किया है। किले में एक मृण्मय दरबार महल' था. जो सुल्तान का दरबार था जिसमें कुलीन वर्ग, अधिकारीगण और प्रतिष्ठित विद्वान शिरकत किया करते थे। काष्ठ दीर्घा / छज्जा महल सुल्तान के अधिकारियों के लिए था, और केन्द्रीय अहाता' या 'सार्वजनिक न्यायालय महल वह स्थान था जहां सुल्तान आम जनता के लिए दरबार लगाय करते थे। 

लेकिन वर्तमान में खंडहर अब भी काफी सुंदर आकृति और कलाकारी का प्रतीक नजर आता है। 

वर्तमान में इस किले की देखरेख 

वर्तमान में इस किले के परिसर और इसके अंदर की देखरेख की जिम्मेदारी दिल्ली विरासत व भारतीय पुरातत्व विभाग के अधीन आती है। 

इस किले में प्रवेश शुल्क

इसके लिए परिसर में भारतीय के लिए प्रवेश शुल्क ₹25 है

फिरोज शाह कोटला स्टेडियम



इस किले के बराबर में ही दिल्ली का सबसे बड़ा क्रिकेट स्टेडियम है जिसका नाम फिरोज शाह कोटला स्टेडियम था। इसका यह नाम इसी किले के नाम के आधार पर रखा गया था लेकिन अरुण जेटली ( पूर्व केंद्रीय मंत्री) की मृत्यु के बाद इसका नाम अरुण जेटली क्रिकेट स्टेडियम रख दिया गया। यह स्टेडियम काफी बड़ा है और यहां पर ही आईपीएल और भारत व विदेशी के साथ में क्रिकेट मैच खेले जाते हैं

यहाँ के लिए आने जाने के परिवहन साधन 

इस जगह पर आप  हवाई मार्गरेलमार्गसड़कमार्ग, आदि मार्ग के माध्यम से आ सकते हो और यहाँ पर आने जाने के लिए आप रेलगाड़ी, बस, ऑटो, रिक्शा, हवाई जहाज या अपने साधन  आदि के माध्यम से आ-जा सकते हो. 
1. यहां का नियर रेलवे स्टेशन  नई दिल्ली है जो कि आप भारत के किसी भी कोने से यहां पर आ जा सकते हैं। 
2. यहाँ का नियर अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा है। 
3. यहां का नियर बस स्टॉप दिल्ली गेट का है और जो दिल्ली बहादुर शाह जफर मार्ग मार्ग पर स्थित है। 
4. यहां पर आप दिल्ली मेट्रो के माध्यम से भी आ सकते हैं जोकि यहां का दिल्ली मेट्रो रेलवे स्टेशन दिल्ली गेट का है 

यहां के लिए ठहरने व  रुकने की व्यवस्था

अगर आप यहां पर 2 या अधिक दिनों के घूमने व रहने के लिए आते हैं तो आपको यहां पर एक से एक अलग अलग तरह के होटल आदि मिल जायेंगे। यहां पर सबसे अधिक पर्यटक दिल्ली गेट और पहाड़गंज पर आप होटल में ठहर सकते  हैं। 

आप फिरोज शाह कोटला को हमारे यूट्यूब चेनल पर भी इस किले के बारे में जान सकते हो और अच्छे से इसको देख सकते हो 



यहां पर घूमने लायक  व ऐतिहासिक जगह

अगर आप यहां पर दिल्ली के जंतर मंतर में घूमने के लिए आते हो तो आपको इसके अतिरिक्त यहां पर कई ऐसी जगह देखने को मिलेगी जहां पर आप परिवार दोस्तों या अन्य के साथ आनंद ले सकते हैं:-

1. राजघाट

इसके आसपास घूमने के लायक व सबसे बड़ी हरियाली पार्क राजघाट का है जहां पर महात्मा गांधी की समाधि कही जाती है और यहां पर हमेशा दिव्यज्योत चलती रहती है। इस स्थान पर कई देश विदेशी और राजनेता व सामान्य लोग यहां पर बड़ी संख्या में आते हैं यहां की जगह बहुत ही एकांत शांत वातावरण की है। 

2. दिल्ली का लाल किला

यहां का सबसे प्रसिद्ध और घूमने लायक जगह दिल्ली का लाल किला है जो कि भारत का भी प्रसिद्ध जगह माना जाता है इसी जगह पर भारत के प्रधानमंत्री भारत के आजादी दिवस 15 अगस्त को यहां पर झंडा फहराते हैं। लाल किला का इतिहास देखें दिल्ली का लाल किला। 

3. दिल्ली के प्रसिद्ध जामा मस्जिद

इस किले से थोड़ी ही दूर दिल्ली की सबसे प्राचीन और प्रसिद्ध जामा मस्जिद है जो कि काफी दूर-दूर से वह काफी संख्या में लोग यहां पर यहां का नजारा देखने और यहां पर शुक्रवार के दिन नमाज अदा करने के लिए आते हैं और इसी के बराबर में यहां की मार्केट काफी भव्य रूप में और काफी बड़ी संख्या में लोग यहां पर शॉपिंग करने के लिए आते हैं। दिल्ली के जामा मस्जिद का इतिहास। 

4. दिल्ली का पुराना किला

इस किले से थोड़ी ही दूर दिल्ली का पुराना किला है जो कि दिल्ली के मशहूर ऐतिहासिक स्थलों में गिना जाता है और यहां संबंध भारत के पौराणिक कथाओं महाभारत काल से भी जोड़ा जाता है। दिल्ली का पुराना किला का इतिहास और यहां का नजारा। 


5.दिल्ली का प्रगति मैदान

दिल्ली के फिरोजशाह कोटला से कुछ ही दूरी पर दिल्ली का प्रगति मैदान है जो कि पूरे दिल्ली का मशहूर है और यहां पर काफी संख्या में लोग यहां के प्रगति मेले का आनंद और यहां का नजारा देखने के लिए  देश के कोने-कोने से आते हैं। 

इनसे अलग फिरोज शाह कोटला से कुछ ही दूरी पर काफी ऐसे ऐतिहासिक जगह है जो अपने आप में प्रसिद्ध और घूमने लायक हैं जैसे हिमायू का मकबरा, सफदरजंग का मकबरा, इंडिया गेट,सराय काले खां, चांदनी चौक, शीशगंज गुरुद्वारा, कश्मीरी गेट, सेंट्रल पार्क, इंडिया गेट, दिल्ली गेट चावड़ी बाजार आदि। 

साथियो आशा करता हूं कि मेरे द्वारा दी गई यह जानकारी आपको काफी अच्छी  लगी होगी और आपके लिए काफी फायदेमंद होगी।अगर आपको मेरे द्वारा दी गई यह जानकारी अच्छी लगी हो तो इसको शेयर जरूर करें । 

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