क्या आप जानते हो? उज्जैन का इतिहास क्या है? उज्जैन का इतिहास कैसा रहा है? उज्जैन में क्या-क्या घटना घटी है? जिसके लिए उज्जैन को काफी प्रसिद्ध माना जाता है! क्या आप जानते हो? उज्जैन का वह क्षेत्र जहां पर भगवान शिव का 12 ज्योतिर्लिंग में से 1 ज्योतिर्लिंग स्थापित हैं!! क्या आप जानते हो? उज्जैन के कौन-कौन से राजा रहे हैं? और उज्जैन को किस शासक के कारण सबसे ज्यादा प्रसिद्ध माना जाता है!!और क्या आपको पता है? उज्जैन में क्या क्या प्रसिद्ध जगह है? तो चलिए जानते उज्जैन के इतिहास से इन सभी के सवाल जानते है ?
उज्जैन के बारे में
आज के समय में उज्जैन शहर काफी प्रसिद्ध
जगह माना जाता है और उज्जैन शहर को प्रसिद्ध जगह के साथ ही ऐतिहासिक जगह भी कहते है क्योकि इसका अपना एक अलग ही इतिहास रहा है। उज्जैन का इतिहास काफी
पुराना माना जाता है। उज्जैन में कई राजा-महाराजा आये और यहाँ पर राज किया। जिसमे उन्होंने इसको अपनी राजधानी बनाया तो किसी ने
यहाँ पर ही रहकर राज किया। उज्जैन को वर्तमान में महाकाल की नगरी कहा जाता है क्योंकि यहां महाकाल के 12 ज्योतिर्लिंग में से एक ज्योतिर्लिंग स्थापित है। उज्जैन को कालिदास की नगरी, भी कहा जाता है। उज्जैन आज के समय में मंदिरों की नगरी है, उज्जैन के प्राचीन नाम अवंतिका, उज्जैनी, कनकश्रन्गा आदि है।
यहाँ कहा है
उज्जैन शहर वर्तमान में भारत के राज्य मध्य प्रदेश के उज्जैन जिले के अंतर्गत आता है उज्जैन को मध्य प्रदेश के जिले के रूप में गिना जाता है। उज्जैन शहर मालवा पठार के दक्षिणी किनारे पर स्थित है एवं मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल से 190 किमी पश्चिम में स्थित है। और दिल्ली से लगभग 783 किलोमीटर दूर स्थित है।
उज्जैन का इतिहास
उज्जैन का इतिहास कई हजार वर्षों पुराना माना जाता है। उज्जैन को उज्जयिनी कहाँ जाता था और उज्जैन को महादेव की नगरी भी कहा जाता है जोकि कई हजार वर्षों पुराना इसका एक इतिहास रहा है इसके अलावा इस शहर को भगवान श्री कृष्ण की शिक्षा का केंद्र भी माना जाता है। इसके बाद अलग-अलग युगों में अलग-अलग शासकों ने इस क्षेत्र पर शासन किय। इसका इतिहास भगवान महा शिव के काल से लेकर वर्तमान काल तक रहा है इसलिए इसका इतिहास हम कई भागों में विभक्त करके तब जानते हैं।
1. भगवान महाकाल के समय का पौराणिक इतिहास
आज के समय में हम सब उज्जैन को महाकाल की नगरी के रूप में जानते हैं इसका कारण यह है कि इस नगरी को भगवान महाकाल ने अपने समय में बसाया था। स्कंद पुराण के अनुसार यहां पर एक त्रिपुर नाम का राक्षस रहा करता था जिसको भगवान शिव ने मार कर इस नगरी को उज्जयिनी के रूप में बसाया।इसी प्रकार अवंति खंड में भी विस्तार पूर्वक वर्णन से सनकादि ॠषियों द्वारा दिया नामोललेख उज्जयिनी बताया गयाहै। इसी तरह वेद पुराणों में उल्लेख है कि जब समुद्र मंथन हुआ था तो उससे उत्पन्न अमृत की एक बूंदे यहां पर गिर गई थी जो की शिप्रा नदी में स्थित थी उसी समय से यहां पर उज्जैनी को एक स्थान के रूप में शिप्रा नदी के किनारे बसाया गया था इसलिए आज भी यहां पर हर 12 वर्ष में कुंभ का मेला आयोजन होता है।
2. सतयुग काल में उज्जैन का इतिहास
3. त्रेता युग में उज्जैन का इतिहास
त्रेता युग के हम उस समय की बात कर रहे हैं जब अयोध्या के राजा दशरथ अपनी पत्नी के साथ इसी स्थान उज्जैन में शिप्रा नदी के किनारे पूजा करने आया करते थे। इसके साथ ही भगवान श्री राम 14 साल के वनवास काटने के दौरान लक्ष्मण और सीता के साथ उज्जैन में शिप्रा नदी के किनारे राम घाट पर दशरथ का पिंडदान किया।इसके बाद दक्षिण दिशा में चलते हुए मंदिर के पास आकर व्रत वृक्ष के नीचे आराम कर रहे थे तभी सीता माँ के पूजन समय हो गया वटवृक्ष के पास भगवान चिंतामन इच्छा मन और सिद्धि विनायक की मूर्ति की स्थापना। इसके बाद तीनों ने प्रथम पूजा किया था पूजा के दौरान जलाभिषेक करने के लिए जब उन्हें जल नहीं मिला तो लक्ष्मण जी अपनी बाण से मंदिर के सामने बाणगंगा के रूप में जल को पाताल से जमीन पर ले आए। इसलिए यहां पर बावड़ी का नाम बानगंगा लक्ष्मण बावरी है भगवान राम ने चिंतामन, लक्ष्मण जी ने इच्छामन, सीता माँ ने सिद्धिविनायक का पूजन किया था।
4. द्वापर युग में उज्जैन का इतिहास
अगर हम द्वापर युग की बात करे तो उज्जैन का सम्बन्ध द्वापर युग में भी रहा है। मथुरा में कंश का वध करने बाद भगवान् श्री कृष्ण और बलराम ने अपनी शिक्षा को उज्जैन में ही पूरा किया था। इसका प्रमाण पुराणों व महाभारत में उल्लेख आता है कि वृष्णि-वीर कृष्ण व बलराम यहाँ गुरु सांदीपनी के आश्रम में विद्याप्राप्त करने हेतु आये थे।और इसका प्रमाण आज भी आश्रम में देखने को मिलता है। इतना ही नहीं यहाँ पर श्री कृष्णा की बुआ भी यहाँ की महारानी राज्याधिदेवी थी ।
5. महाभारत काल के समय में उज्जैन का इतिहास
अब बात करते है महाभारत काल के समय की जिसमे उज्जैन का इतिहास महाभारत काल से भी रहा है। श्री कृष्णा की बुआ भी यहाँ की महारानी राज्याधिदेवी थी । महाभारत काल के समय उज्जैन का राजा जयसेन और रानी राज्याधिदेवी के दो पुत्र विद व अनुविंद और एक पुत्री मित्रविन्दा थी| पुराणों के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण ने उज्जैन से ही मित्रवंदा को उसकी इच्छानुसार भरी स्वयंवर सभा से बलपूर्वक ले आए थे। मित्रविन्दा के भाई ही उज्जैन के राजा हुए थे बाद में जो महाभारत में कौरवो की तरफ से कुरुक्षेत्र के युद्ध लड़े थे।
6. प्राचीन काल में उज्जैन का इतिहास
उज्जैन का इतिहास प्राचीन रहा है इसका ऐतिहासिक प्रमाण 600 ईस्वीपूर्व में मिलता है। उस समय भारत 16 जनपदों म में विभक्त था। जिसमे से एक जनपद अवन्ति था। उज्जैन इसी अवन्ति का हिस्सा हुआ करता था।
उस समय यहाँ का राजा चंडप्रद्योत नामक सम्राट था इसका प्रभुत्व तीसरी ईस्वी शताब्दी तक माना जाता है।इनका शासन उज्जैन पर 3०० ईस्वीपूर्व तक रहा लेकिन इसमें इन्होने उज्जैन पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया गया जिसमे इनके शासनकाल में उज्जैन का विकाश नहीं हुआ|
इसके बाद चौथी शताब्दी ईसा पूर्व इसका प्रभुत्व मौर्य शासन के अधीन आया, तब बिन्दुसार ने अपने पुत्र सम्राट अशोक को उज्जैन का प्रतिनिधित्व के तौर पर उज्जैन भेजा। बिन्दुसार की मृत्योपरान्त अशोक ने उज्जयिनी के शासन की बागडोर अपने हाथों में संभाली और जैसे ही यहाँ के शासन को अशोक मौर्या ने संभाला उज्जयिनी का सर्वांगीण विकास कियां।
मौर्य शासन के बाद उज्जैन की प्रमुख भी घट गई। दूसरी शताब्दी पूर्व उज्जैन में और अन्य जगह शक वंश का शासन था जिसमें बाद में राजा विक्रमादित्य ने शक वंश को हराकर उज्जैन पर विजय पाई और उज्जैन का राजा बना और राजा विक्रमादित्या का शासन आया तो उज्जैन की पूरी काया ही पलट गयी। इनके शासनकाल में जो उज्जैन का जो विकाश और पहचान मिली वो आजतक किसी भी राजा या शासक को नहीं मिली। इन्होने सबसे ज्यादा उज्जैन में मंदिर के साथ ही वहा की नगरी का जिणोरद्वार करवाया इतना ही नहीं राजा विक्रमादित्या का मंदिर भी आपको आज देखने को मिल जायेगा राजा विक्रमादित्य के शासन को उज्जैन का सबसे बड़ा शासन काल और उज्जैन का इतिहास कहा जाता है।
विक्रमादित्य के बाद जिस वंश ने विकास किया वह पश्चिमी क्षत्रपों की एक शाखा कार्दमक राजवंश की स्थापना 78ई. में उज्जैन के क्षत्रप (गवर्नर) चष्टन ने की थी। यूनानी भूगोलवेत्ता और खगोलशास्त्री टॉलमीने अपने ज्योग्रेफ़िया (भूगोल) में चष्टन के क्षेत्र का वर्णन करते हुए उज्जैन (ओज़ीन) का अपनी राजधानी शहर के रूप में उल्लेख किया है।
सन 130 में उनका पोता रुद्रदामन-प्रथम उनका उत्तराधिकारी बना, जो कार्दमक वंश का सबसे शक्तिशाली राजा था। कार्दमक राजवंश के शासक महाक्षत्रप के नाम से जाने जाते थे। क्षत्रपों के शासनकाल में उज्जैन एक बड़े व्यापार और शिक्षा केंद्र के रूप में विकसित हुआ था। इन शासकों ने खगोलीय अध्ययन को भी प्रोत्साहन दिया था।
गुप्त-शासकों के शासनकाल में उज्जैन में बहुत ख़ुशहाली थी। चीनी यात्री ह्वेन त्सांग ने अपने सफ़रनामे में उज्जैन के लोगों का वर्णन किया है। संस्कृत साहित्य के महान साहित्यकार कालिदास, भास और शूद्रक, सभी ने अपने लेखन में उज्जैन का उल्लेख किया है।ऐसा भी माना जाता है, कि कालिदास और भास दोनों लंबे समय तक इस शहर में रहे होंगे। कालिदास की कालजयी कृति मेघदूत में उज्जैन शहर का सजीव वर्णन है। उज्जैन में लगभग छठी-सातवीं सदी में खगोल विज्ञान का विकास हुआ और यह खगोलीय अनुसंधान का केंद्र बन गया। प्रसिद्ध खगोलशास्त्री और बहुश्रुत वराहमिहिर उज्जैन के ही थे।
सातवीं शताब्दी में उज्जैन कन्नौज के हर्षवर्धन साम्राज्य में विलीन हो गया। उस काल में उज्जेन का सर्वांगीण विकास भी होता रहा व कुछ मंदिरो का निर्माण भी करवाया गया।
7. मध्यकाल में उज्जैन का इतिहास
अगर बात की जाए मध्यकाल के इतिहास की तो उज्जैन में मध्यकाल में भी कई ऐसी घटनाएं घटी जो उज्जैन के लिए एक इतिहास में दर्ज किया गया उज्जैन में चौहान और तोमर वंश के शासकों ने शासन किया मध्यकाल में और उज्जैन को बनाए रखा लेकिन बारहवीं शताब्दी में खिलजी सुल्तानों के आक्रमण के कारण उज्जैन का बुरी तरह से लूटा और यहां के काफी स्थानों को नष्ट किया गया जिसमें कई मंदिर भी शामिल थे इसके बाद 15 शताब्दी में जब मुगलों का शासन आया तो उज्जैन को प्रांतीय मुख्यालय बनाया और उज्जैन की दशा में सुधार किया क्योंकि सम्राट अकबर ने मालवा पर बाज बहादुर के आधिपत्य का अंत किया और उज्जैन की रक्षा के लिए एक शहर की दीवार बनवाई:- शहर में नदी दरवाजा ,काली देव दरवाजा, सती दरवाजा, देवास दरवाजा और इंदौर दरवाजा विभिन्न प्रवेश द्वार बनवाएं ।
1658 में उज्जैन के पास एक लड़ाई हुई जिसमें औरंगजेब और मुराद ने जोधपुर के महाराज जसवंत सिंह को हराया, जो राजकुमार दारा की ओर से लड़ रहे थे। औरंगज़ेब ने धार्मिक धार्मिक कट्टरता की कहानियों को ध्यान में रखते हुए मंदिरों को कई अनुदान दिए, जो आज तक पुजारियों के परिवारों द्वारा संरक्षित हैं। कहा जाता है कि उन्होंने अपने भाई को मारने के बाद दारा शिकोह के गुरु कविंद्रचार्य सरस्वती को कंबल संरक्षण देते हुए एक फरमान जारी किया था। कविंद्रचार्य सरस्वती द्वारा हस्ताक्षरित कई पांडुलिपियां आज तक सिंधिया ओरिएंटल इंस्टीट्यूट में संरक्षित हैं।
महमूद शाह के शासनकाल में, महाराजा सवाई जय सिंह को खगोल विज्ञान के एक महान विद्वान, माल्वा के गवर्नर बनाया गया था, उन्होंने उज्जैन में वेधशाला का पुनर्निर्माण किया और कई मंदिरों का निर्माण किया।
17 वीं शताब्दी की शुरुआत में, उज्जैन और माल्वा मराठों के हाथों में हाथो में आया। इन्होने धीरे-धीरे पूरे क्षेत्र पर कब्जा कर लिया। मालवा के मराठा वर्चस्व इस क्षेत्र में एक सांस्कृतिक पुनर्जागरण के लिए गति प्रदान करता है और आधुनिक उज्जैन अस्तित्व में आया। इस अवधि के दौरान उज्जैन के अधिकांश मंदिरों का निर्माण किया गया था।
इस समय के दौरान उज्जैन पूना और कांगड़ा शैली के चित्रकारों की बैठक का मैदान बन गया। पेंटिंग की दो अलग-अलग शैलियों का प्रभाव विशिष्ट है। मराठा शैली के उदाहरण राम जनार्दन, काल भैरव, कल्पेश्वर और तिलकेश्वर के मंदिरों में पाए जाते हैं जबकि पारंपरिक मालवा शैली को संदीपनी आश्रम में देखा जा सकता है और स्थानीय शेठों के कई बड़े घरों में देखा जा सकता है।
मराठा काल में, लकड़ी के काम की कला भी विकसित हुई। दीर्घाओं और बालकनियों पर लकड़ी की नक्काशी की गई थी लेकिन कई उत्कृष्ट उदाहरणों को या तो कबाड़ या नष्ट कर दिया गया है।
उज्जैन अंततः 1750 में सिंधियों के हाथों में और 1810 तक जब दौलत राव सिंधिया ने ग्वालियर में अपनी नई राजधानी स्थापित की, तब वह अपने प्रभुत्व का प्रमुख शहर था।
राजधानी को ग्वालियर स्थानांतरित करने से उज्जैन के वाणिज्यिक महत्व में गिरावट आई।
8. भारत के स्वतंत्रता से पहले अंग्रेजों के शासनकाल में उज्जैन का इतिहास
19 वीं शताब्दी पर उज्जैन भारतीय ब्रिटेन सरकारों के हाथ में आया और इन्होंने उज्जैन को एक उद्योग केंद्र के रूप में विकसित किया। बॉम्बे-बड़ौदा लाइन की उज्जैन-रतलाम-गोधरा शाखा के खुलने से व्यापर केंद्र फिर बना। मुख्य रूप से बंबई के साथ व्यापार की एक बड़ी मात्रा, ब्रिटिश भारतीय काल में कपास, अनाज और अफीम में मौजूद थी।
9. वर्तमान में उज्जैन की मान्यता व इतिहास
आज के वर्तमान समय में उज्जैन एक प्रसिद्ध स्थल के रूप में गिना जाता है और उज्जैन को २ नामो के लिए प्रशिद्ध माना जाता है एक तो महाकाल की नगरी और दूसरा सम्राट विक्रमिदित्य के लिए। वर्तमान सरकार ने भी उज्जैन में विकाश व मंदिरो का उध्दार किया है कि आज के समय उज्जैन में देश विदेश के कोने कोने से यहाँ घूमने आते है।उज्जैन में कॉरिडोर और अन्य मंदिर का जीर्णोद्धार किया गया है।
उज्जैन के प्रसिद्ध राजा व शासक
इतिहास काल के पूर्व महाभारत में विद और अनुविंद उज्जयिनी के शासक बताये गये हैं, जो कुरुक्षेत्र के युद्ध में कौरवों की ओर से लड़े थे। बौद्धकाल में यह एक विस्तृत राज्य के रूप में था, जिसमें उज्जयिनी एक बड़ी व्यापारिक मण्डी के रूप में विकसित थी। पाली साहित्यों के अनुसार यह नगरी राजा चंद्रप्रद्योत की राजधानी थी। यह राजा गौतम बुद्ध का समकालीन था। उसके तीन पुत्र तथा वासवदत्ता नामक एक पुत्री थी। वासवदत्ता ही बाद मे कौशल सम्राट उदयन की प्रधान रानी हुई। धम्मपद के टीका में इसका उल्लेख है। दण्डिन ने इसी आधार पर ""वासवदत्ता' लिखी। "मंझिम निकाय' से पता चलता है कि राजा चण्डप्रद्योत ने आसपास के राजाओं को अपने अधिपत्य में कर लिया था। उसकी बढ़ती हुई शक्ति को देखकर सम्राट् बिम्बसार के पुत्र अजातशत्रु ने अपनी राजधानी राजगृह को सुरक्षित कर लिया था। इसके अलावा उज्जैन के शासक:-
1. सम्राट अशोक मौर्य
अजातशत्रु के बाद उज्जैन का राजा अशोक मौर्य बना जो की मौर्य शासक बिन्दुसार का पुत्र था इसके शासनकाल में उज्जैन का काफी विकाश हुआ था
2.शुंग वंश के शासक -अग्निमित्र (185ई.पूर्व से 73 ई.पूर्व)
सम्राट अशोक के बाद उज्जैन का शासक शुंग वंश के राजा अग्रिमित्र बना जो पुष्यमित्र शुंग का पुत्र था लेकिन इन्होने उज्जैन के विकाश के लिए इतना ध्यान नहीं दिया लेकिन कालिदास के प्रसिद्ध नाटक 'मालविकाग्निमित्रम्' का नायक है। जो इसका प्रमाण है कि इस क्षेत्र में शुंग वंश का प्रभुत्व रहा।
3. राजा गिर्दभील
राजाअग्रिमित्र के बाद उज्जैन के राजा गर्दभिल्ल बने जो उज्जैन में पहली शताब्दी के आरंभ में राजा गर्दभिल्ल का शासन था , वे एक वीर राजा थे , जिनके पराक्रम से शक शासक भी डरते थे । गर्दभिल्ल , भील जनजाति से संबंधित हैं , पूर्वी ओडिशा में गर्दभिल्ल शासक हुआ करते थे जो भील जनजाति के होते थे ।
4. शक वंश
राजा गर्दभिल्ल के साथ युद्ध करके शक वंश के राजा चष्टन ने 78 ई.पू. उज्जैन की की गद्दी पर पर अपना राज्याभिषेक करवाया और कुछ वर्ष उज्जैन पर राज किया।
5.जय दमन
राजा चष्टन के कुछ वर्ष बाद उज्जैन का शासक चष्टन का पुत्र जयदमन बना लेकिन यहाँ ज्यादा दिनों तक राज नहीं कर पाया था और इसने कुछ ख़ास उज्जैन का विकाश भी नहीं किया था.
6. सम्राट विक्रमादित्य
भारत में शकों को बुलाने का श्रेय कलकाचार्य को है, शकों ने उज्जैन के शासक गर्दभिल्ल को युद्ध में हराकर उज्जैन पर अधिकार जमा लिया , तब राजा गर्दभिल्ल के पुत्र विक्रमादित्य ने शकों के खिलाफ युद्ध किया , विक्रमादित्य ने 57 ई.पू. शकों को परास्त कर उज्जैन में पुनः अपने पूर्वजो का साम्राज्य स्थापित किया और वे इस देश के महान सम्राट कहलाए । आज भी उनके उज्जैन में शिलालेख देखने को मिलते है
प्रतापी शासक विक्रमादित्य के काल के संबंध में बहुत मतभेद है। कहा जाता है कि बर्बर शकों पर विक्रम संवत् नाम का एक नया युग 57 ई.पू. में शकों पर उसकी विजय से आरम्भ हुआ. इस समय के बाद “विक्रमादित्य” एक अत्यन्त इच्छित उपाधि बन गयी. जिसने भी कोई महान कार्य किया उसने इस उपाधि को उसी तरह ग्रहण कर लिया जिस तरह प्राचीन रोम के सम्राटों ने अपनी वीरता, पराक्रम तथा शक्ति पर जोर देने के लिए ‘सीजर’ की उपाधि धारण कर ली थी । विक्रमादित्य अपने नवरत्नों के साथ यहीं राज्यसभा करते थे। इन नवरत्नों में मेघदूत के रचयिता कालिदास सबसे प्रसिद्ध हैं।
विक्रमादित्य के वंश का शासन करीब 153 वर्ष तक रहा जिसमे विक्रमादित्य ने 60 वर्ष उसके बाद विक्रम चरित्र उपनाम धर्मादित्य ने 40 वर्ष तक, भाइल्ल ने 11 वर्ष तक, नाइल ने 14 वर्ष तक, तथा नाहद्र ने 10 वर्ष तक शासन किया।
7.शक वंश के रुद्रदामन-प्रथम
सन 130 ईस्वी में गर्दभिल्ल के वंशो के बाद पुन: शक वंश के राजा चष्टन के पौत्र रुद्रदामन-प्रथम उज्जैन का राजा बना।इस शासक ने उज्जैन के साथ ही भारत के अन्य हिस्सों में भी जीणोद्धार करवाया। यह शक वंश में सबसे प्रतापी शासक माना जाता है। यह संस्कृत का बड़ा प्रेमी था इसने ही सबसे पहले विशुद्ध संस्कृत में लम्बा अभिलेख जारी किया
इसके बाद भी शक वंश के शासक ने उज्जैन व अन्य राज्यों पर शासन किया लेकिन उन सब ने उज्जैन का इतना ध्यान नहीं दिया और विकाश नहीं हो सका । इस वंश का 4 ईस्वी में अंतिम शासक रुद्रदेव तृतीय हुआ था.
8. गुप्त वंश
शक वंश के बाद उज्जैन का शासन गुप्त वंश के राजा के अधीन आया जो द्वितीय विक्रमोपाधिधारी स्कंदगुप्त ई. 455-467 तथा द्वितीय कुमारगुप्त विक्रम ने 473-477 में शासन किया। इनके शासनकाल में उज्जैन एक खुशहाली राज्य था । इनके शासनकाल में उज्जैन में कुछ मंदिरों के निर्माण से हुआ था। गुप्ता वंश का शासन उज्जैन पर व् अन्य भारत हिस्सों पर 7वी शताब्दी तक रहा इनके शासनकाल में उज्जैन के विकाश के साथ ही उज्जैन के जनता काफी खुशहाली थे और उज्जैन में इनके काल में ही कई खगोलीय विज्ञान का विकाश हुआ था।
इस वंश के संस्थापक श्रीगुप्त थे. गुप्त वंशावली में श्रीगुप्त, घटोत्कच, चन्द्रगुप्त प्रथम, समुद्रगुप्त, रामगुप्त, चन्द्रगुप्त द्वितीय, स्कन्दगुप्त जैसे शासक हुए. इस वंश में तीन प्रमुख शासक थे – चन्द्रगुप्त प्रथम, समुद्रगुप्त और चन्द्रगुप्त द्वितीय (विक्रमादित्य).
इस वंश के शासनकाल में उज्जैन पर एक सूबे के रूप में शासन किया था।
9. राजवर्धन और हर्षवर्धन (पुष्यमित्र वंश)
गुप्त वंश के बाद उज्जैन पुष्यमित्र वंश के राजा राजयवर्धन के अधीन आया लेकिन यह ज्यादा दिन तक नहीं रहे फिर इसके बाद राजा हर्षवर्धन सन 600 ईस्वी में राजगद्दी पर बैठे। कन्नौज व मालवा को जीतकर अपने अधीन किया। जिससे उज्जैन भी इनके अधीन आया। इनके काल में ही चीनी यात्री ह्मवेनसांग भारत आये थे, जिसमे इन्होने लिखा है कि इस काल में भी उज्जैन एक प्रसिद्ध नगर था और यहाँ के लोग समृद्ध थे। उनकी चाल-ढ़ाल सुराष्ट्र के लोगों जैसी थी।
सन 647 ईस्वी राजा हर्षवर्धन मृत्यु हो गई थी इसके बाद उज्जैन कुछ वर्षो तक स्वतंत्र रहा था। सम्राट हर्ष की मृत्यू के बाद उत्तरी भारत में राज्य निप्लव हुआ। इससे उज्जैन भी प्रभावित हुआ
10. राजपूत वंश
सम्राट हर्षवर्धन की मृत्यु के बाद सातवीं शताब्दी से 12वीं शताब्दी तक उज्जैन राजपूत वंश के अधीन आया जिसमें राजपूत के अलग-अलग वंश ने उज्जैन व मालवा पर अलग-अलग राजाओं ने अलग-अलग समय पर उज्जैन को अपने अधीन रखा और शासन किया। इसी काल में गुजरात के चालुक्त्, चेदि के कलचुरी, बुँदेलखण्ड के चन्देल, मान्यखेत के राआजों तथा कई अन्य राजपूत वंश बारी-बारी से उज्जैन पर आक्रमण करते रहे। इससे उज्जैन की स्थिति खराब ही होती गई। परमारों क पतन के पश्चात यहाँ तोमर राजपूतों का राज्य रहा, किंतु इसके पश्चात से उज्जयिनी का अधःपतन आरंभ होगा । 9 वीं शताब्दी तक उज्जैन परमार शासकों के आधिपत्य में आया इनमें जो राजपूत वंश थे, वह गुर्जर प्रतिहार, चालुक्य, चौहान, चंदेल, परमार, गढ़वाल व राष्ट्रकूट वंश आदि थे ।
सातवीं शताब्दी में गुर्जर प्रतिहार वंश के राजा नागभट्ट-२ ने मालवा पर शासन किया और 9वी शताब्दी तक मालवा के साथ ग्वालियर पर शासन किया था।
गुर्जर-प्रतिहार वंश के प्रमुख शासक थे- वत्सराज (783-795 ई.) , नागभट्ट - II (795-833 ई.) , मिहिरभोज (836-889 ई.) , महेन्द्रपाल (890-910 ई.) एवं महिपाल (914-944 ई.) आदि।
9 वीं शताब्दी तक उज्जैन परमार शासकों के आधिपत्य में आया, जिनका शासन गयारहवीं शताब्दी तक चलता रहा। इस समय में उज्जैन की क्रमिक उन्नति होती रही। परमारों के बाद उज्जैन पर चौहान और तोमर राजपूतों ने अधिकारों कर लिया। सन 1000 से 1300 ई. तक मालवा पर परमार राजाओं का शासन रहा और बहुत समय तक परमार राजाओं की राजधानी उज्जैन रहीं। इस समय में सीयक द्वितीय, मुंजदेव, भोजदेव, उदयादित्य, नरवर्मन जैसे अनेक महान शासकों ने साहित्य, कला एवं संस्कृति की उन्नति में अपना समय लगाया।
परमार वंश के सबसे शक्तिशाली शासक राजा सीयक, श्रीहर्ष और राजा भोज (1000-1055 ई.) थे जिन्होंने उज्जैन पर शासन पर किया और उज्जैन की रक्षा की थी।
राजा भोज बाद इनका पुत्र जयसिंह और उदयादित्य (1059) ने शासन किया। उदयादित्य का लड़का लक्ष्मदेव (1068), फिर क्रमश: नरवर्मदेव (1104), यशोवर्मदेव (1133), अर्जुननवर्मदेव, देवपाल (1216) यानी एक के पश्चात एक ने शासनसूत्र का संचालन किया।
चौहान वंश का संस्थापक (7वीं शताब्दी) वासुदेव था। (इस वंश के राजा में पृथिवीराज चौहान ने उज्जैन को अपने अधीन रखकर इसकी राज्य की रक्षा की )
गुर्जर-प्रतिहार वंश का संस्थापक नागभट्ट - II (730-756 ई.) मालवा का शासक था।
चंदेल वंश का संस्थापक नन्नुक (831 ई.) था।
चालुक्य (सोलंकी) वंश का संस्थापक मूलराज - I (995-1008 ई.) था।
परमार वंश के संस्थापक उपेन्द्रराज था।
13 शताब्दी से 17 वी शताब्दी तक उज्जैन पर आधिपत्य मुस्लिम शासको दिल्ली के अधीन आ गया था ।
10.दिल्ली सल्तनत राजा इल्तुतमिश
राजा देवपल के समय ही 13 वी शताब्दी में गुलाम वंश के शासक शमशुद्दीन इल्तुतमिश ने सन 1234 में उज्जैन पर आक्रमण किया जिसमे उसने उज्जैन के कई मंदिरो पर लूटपाट किया और यहाँ के प्राचीन मंदिरों एवं पवित्र धार्मिक स्थानों का वैभव भी नष्ट कर दिया। महाकाल मंदिर से महादेव की स्वर्ण मूर्ति तथा कई अन्य मूर्तियों को अपने साथ दिल्ली ले गया।
11. दिल्ली जलालुद्दीन खिलजी
सन 1290 में जलालुद्दीन खिलजी का शासक बना तब उसने सबसे पहले मालवा पर 1991 वह 1993 में आक्रमण किया जिसमें उज्जैन पर कब्जा करके और उज्जैन को को अपने अधीन कर लिया था।
12. अलाउद्दीन खिलजी
मालवा पर शासन करने वाला महलकदेव एवं उसका सेनापति हरनन्द (कोका प्रधान) बहादुर योद्धा थे। 1305 ई. में अलाउद्दीन ने मुल्तान के सूबेदार आईन-उल-मुल्क के नेतृत्व में एक सेना को मालवा पर अधिकार करने के लिए भेजा। दोनों पक्षों के संघर्ष में महलकदेव एवं उसका सेनापति हरनन्द मारा गया। नवम्बर, 1305 में क़िले पर अधिकार के साथ ही उज्जैन, को जीत कर मालवा समेत दिल्ली सल्तनत में मिला लिया गया ।
13. गयासुद्दीन तुगलक
अल्लुद्दीन खिलजी के बाद सन 1322 में मालवा और उज्जैन गयासुद्दीन तुगलकों ने यहां अपना सूबा कायम किया।1398 में जिस समय तैमूर ने दिल्ली पर चढ़ाई की, तब अवसर पाकर तुगलकों के सूबेदार दिलावर खान ने उज्जैन पर निजी सुल्तानी कायम कर ली।
सन 1398 से 1404 तक तैमूरलंग का मालवा समेत भारत पर अधिपत्य था
14. होशंग शाह गौरी
दिलावर खान का पुत्र होशंग शाह(1406-1436) मालवा क्षेत्र का औपचारिक रूप से नियुक्त प्रथम इस्लामिक राजा था। इसे हुशंग शाह ग़ोरी के नाम से भी प्रसिद्ध इस मालवा का राजा घोषित होने से पूर्व अल्प खाँ नाम प्रचलित था।लेकिन यह मालवा और उज्जैन का अपने आप को राजा नहीं समझता था।
15. महमूद शाह (खिलजी वंश)
मालवा में खिलजी वंश की स्थापना 1436 ई. में महमूदशाह ने की और मालवा व् उज्जैन को अपने अधिकार क्षेत्र में ले लिया। इनका शासन मालवा व् उज्जैन पर सन 1531 तक रहा था जिसमे अंतिम शासक उज्जैन और मालवा का महमूदशाह-2 था इसमें उज्जैन का ज्यादा विकास शासक नसरुद्दीन खिलजी ने किया था की मालवा की राजगद्दी पर सन 1501 में बैठा था । क्योकि इसने हिन्दू धर्म को अपनाया था और मंदिरो का निर्माण करवाया था।
16.बहादुर शाह
गुजरात के शासक बहादुर शाह ने ने महमूद शाह-2 को सन 1531 को युद्ध में परास्त करके मालवा व् उज्जैन को अपने अधिकार क्षेत्र में गुजरात के मिला लिया । और उज्जैन व मालवा पर अपने सूबेदार मल्लू खां को नियुक्त कर दिया गया।
17. हुमायु (मुग़ल वंश)
सन 1535 में मुग़ल वंश बादशाह हुमायु ने बहादुर शाह को युद्ध में हराकर उज्जैन व् मालवा को अपने अधिकार में कर लिया । लेकिन उज्जैन व् मालवा इनके अधिकार क्षेत्र में कुछ वर्षों तक ही रहा था।
18. कादिरशाह उर्फ़ मल्लू खा
हुमायु के चले जाने के बाद मल्लूखा ने उज्जैन पर पुन: अपना अधिकार कर लिया। सन् 1536 में उसने कादिरशाह के नाम से अपने को मालवा का शासक घोषित कर दिया। और 6 वर्षों तक उज्जैन व मालवा पर शासन किया।
19. शेरशाह सूरी
सन् 1542 में अफगानी शाशक शेरशाह सूरी ने मल्लू खा को युद्ध में परास्त करके मालवा को जीतकर उज्जैन पर कब्जा कर लिया। इस तरह सन् 1554 तक उज्जैन व् मालवा पर " शेरशाह सूरी' के वंशो का कब्जा बना रहा। इस वंश का अंतिम शासक आदिलशाह सूरी था जो उज्जैन व मालवा पर सन 1556 तक शासन किया।और इसने अपने सूबेदार सूयाजात खान को मालवा का सूबेदार बनाया।
20. बाज बहादुर
2 वर्षों के बाद पिता शुजाअत खान की मृत्यु के बाद स्वतंत्र मांडू का राजा बना और इसके साथ ही मालवा व उज्जैन का शासक बना और ६ वर्षों तक जिसमे 1556 से 1562 तक शासन किया।
20. मुगल सम्राट अकबर
मुग़ल वंश के शासक सम्राट अकबर ने सन् 1562 ई. में बाजबहादुर को हराकर मालवा के साथ ही उज्जैन को अपने अधिकार क्षेत्र में कर लिया और उज्जैन को मालवा प्रान्त की राजधानी बनाकर एक प्रतिनिधि सूबा रख दिया था। उज्जैन की रक्षा के लिए एक शहर की दीवार बनाई। शहर में नादी दरवाजा, कालीदेव दरवाजा, सती दरवाजा, देवास दरवाजा और इंदौर दरवाजा विभिन्न प्रवेश द्वार थे।
अकबर ने उज्जैन में कालियादेह महल में शांति के लिए रहा। कालियादेह महल में रहकर कई बार उस समय के प्रसिद्ध तत्वज्ञ योगी 'जदरूप' के साथ आत्मशांति के लिए चर्चा में समय बिताता रहा। इस योगी की महत्ता तथा ज्ञान-लाभ की चर्चा स्वयं जहांगीर ने अपनी 'तुजुक-ए-जहांगीरी' पुस्तक में की है।
परमार वंश के बाद उज्जैन का सबसे ज्यादा विकाश और रक्षा बादशाह अकबर द्वारा किया गया था
21. मुगल शासक औरंगजेब
मुग़ल वंश में बादशाह अकबर के बाद बादशाह जहाँगीर, शाहजहाँ और औरंगजेब के अधीन उज्जैन रहा था ।जिसमे इनके सूबेदार उज्जैन के देखभाल किया करते थे । सन् 1658 में उज्जैन के समीप ही औरंगजेब और उसके भाई मुराद ने राजकुमार दारा की ओर से लड़ रहे जोधपुर नरेश जसवन्तसिंह को परास्त किया। इस काल में भी उज्जैन की शोभा व प्रतिष्ठा प्रभावित हुई थी।
इनके बाद औरंगजेब उत्तराधिकारियों के सूबेदार के अधीन उज्जैन व् मालवा का नेतृत्व रहा था
22. मुगल शासक मोहम्मद शाह
सन् 1720 ई. में औरंगजेब के बाद उज्जैन पर मुहम्मद शाह का अधिपत्य था लेकिन उज्जैन की देखरेख इनके शासनकाल नजरअंदाज किया हुआ था। इनके बाद औरंगजेब के सूबेदार के अधीन उज्जैन व् मालवा का नेतृत्व रहा था।
सन् 1733 ई. में मोहम्मदशाह ने अचानक जयपुर महाराजा सवाई जयसिंह को उज्जैन का प्रांत अध्यक्ष सूबेदार नियुक्त कर दिया। इसके बाद जयपुर महराजा सवाई जयसिंह ने जयपुर के साथ ही उज्जैन में भी उन्होंने एक वेधशाला का पुनर्निर्माण किया और कई मंदिरों का निर्माण किया। इस तरह से उज्जैन पुनः उन्नति की ओर अग्रसर हुआ।
मुग़ल मोहम्मद शाह उज्जैन व् मालवा का आखिरी मुस्लिम शासक था
23. पेशवा बाजीराव प्रथम (मराठों का शासन)
सन 1737 ई. में पेशवा बाजीराव प्रथम ने दिल्ली पर हमला कर दिया जिसमे मोहम्मद शाह हार के कारण वहाँ से भाग गया और दिल्ली के साथ ही उज्जैन व् मालवा पर पेशवा बाजीराव प्रथम का अधिपत्य हो गया था।
इन्होने धीरे-धीरे पूरे क्षेत्र पर कब्जा कर लिया। मालवा के मराठा वर्चस्व इस क्षेत्र में एक सांस्कृतिक पुनर्जागरण के लिए गति प्रदान करता है और आधुनिक उज्जैन अस्तित्व में आया। इस अवधि के दौरान उज्जैन के अधिकांश मंदिरों का निर्माण किया गया था।
इस समय के दौरान उज्जैन पूना और कांगड़ा शैली के चित्रकारों की बैठक का मैदान बन गया। पेंटिंग की दो अलग-अलग शैलियों का प्रभाव विशिष्ट है। मराठा शैली के उदाहरण राम जनार्दन, काल भैरव, कल्पेश्वर और तिलकेश्वर के मंदिरों में पाए जाते हैं जबकि पारंपरिक मालवा शैली को संदीपनी आश्रम में देखा जा सकता है और स्थानीय शेठों के कई बड़े घरों में देखा जा सकता है।
मराठा काल में, लकड़ी के काम की कला भी विकसित हुई। दीर्घाओं और बालकनियों पर लकड़ी की नक्काशी की गई थी लेकिन कई उत्कृष्ट उदाहरणों को या तो कबाड़ या नष्ट कर दिया गया है।
इस वंश का बालाजी बाजीराव शासक था जिन्होंने उज्जैन को अपने अधिकार क्षेत्र में रखा था, जिन्होंने उज्जैन को अपने अधिकार क्षेत्र में रखा था इसके बाद इन्होने अपने मध्यप्रदेश के अधिकार क्षेत्र सिन्धे और होलकर सरदारों को बांट दिया।
इस वंश का अंतिम शासक पेशवा बाजीराव-2 था.
24. राणोजी शिंदे (सिंधिया वंश)
राणोजी सिंधी को उज्जैन व् मालवा का क्षेत्र मिलने के बाद इन्होने उज्जैन पर शासन किया है और राणोजी सिन्धे ने अपने स्थान का कारोबार संभालने के लिए रामचन्द्रराव सुखटनकर को दीवान बनाया। इन्होंने यवनकालीन आक्रमणों से उध्वस्त अवन्तिका नगरी का पुन: जीर्णोद्धार किया। आज जिन मंदिरों और भव्य भवनों को हम देखते हैं, वे इन्हीं की निरीक्षकता में सुरक्षित बनाए हुए हैं। इस समय से लेकर यह नगर सिन्धे शाही के शासन में विद्यमान रही है। इन्होने ही सबसे पहले उज्जैन को ही राजधानी बनाया था।
इनके बाद जयप्पा राज शिंदे, जयप्पा राव शिंदे, जानकोजी राव सिंधिया प्रथम, दत्ता जी राव सिंधिया, कादर्जी राव सिंधिया, मानाजीराव सिंधिया और महादजी सिंधिया आदि उज्जैन के शासक थे
25. दौलत राव सिंधिया
जब दौलत राव सिंधिया जी उज्जैन के शासक बने तो इन्होने सन 1810 में अपनी राजधानी उज्जैन से ग्वालीयर स्थापित कर दी, तब वह अपने प्रभुत्व का प्रमुख शहर था।
8. ब्रिटिश शासन
19वी शताब्दी में उज्जैन सिंधिया और ब्रिटिश के बीच समझौता हो गया उज्जैन सहीत पूरे मध्य प्रदेश पर ब्रिटिशो का कब्ज़ा हो गया । जिसमे अलग अलग समय में भारत की आजादी तक अलग अलग भारत के ब्रिटिश सरकार में गर्वनरो के अधीन रहा था। इसमें सबसे ज्यादा गर्वनर लार्ड डलहौजी को माना जाता है क्योकि डलहौजी ने ही भारत में पहली बार 16 अप्रैल, 1853 ई. में बम्बई से थाणे के बीच (34 किमी.) पहली बार रेलगाड़ी चलायी और उज्जैन में रेलगाड़ी चलने की शुरुआत हुई । जिससे बंबई के साथ व्यापार में महत्वपूर्ण सहायक साबित हुए और उज्जैन फिर से एक उद्योगिक के रूप में जाना जाने लगा।
9. भारत सरकार व राज्य सरकार
देश सन 1947 में आज़ाद होने के बाद उज्जैन को मध्य प्रदेश में शामिल हो गया और राज्य पुनगर्ठन अधिनियम के तहत 1 नवंबर, 1956 एक जिले के रूप में मध्य प्रदेश शामिल किया गया। इसका आधिपत्य मध्य प्रदेश के मुख्य मंत्री और देश के प्रधान मंत्री के अधिकार क्षेत्र में आ गया। वर्तमान में उज्जैन का वहाँ के विधायक, सांसद, राज्य के मुख्यमंत्री और देश के प्रधानमंत्री के तहत आता है जो समय समय पर और अपने-2 कार्यकाल पर उज्जैन का विकाश करते रहते है जिसमे अभी के कुछ वर्ष पहले उज्जैन महाकाल कॉरिडोर का निर्माण किया गया था।
उज्जैन में प्रसिद्ध मंदिर व जगह
आज के समय में उज्जैन भारत के ही नहीं बल्कि विश्व विख्यात पर्यटन स्थल है, जिसमें महाकाल मंदिर के अलावा और भी कई सारे प्रसिद्ध मंदिर है साथ ही यहां पर कुछ ऐतिहासिक जगह दी है जो कि पर्यटन के लिहाज से काफी महत्वपूर्ण मानी जाती है।
1. उज्जैन शहर के अंदर मंदिर
आप जब उज्जैन जाओगे तो आपको उज्जैन के शहर के अंदर आपको काफी मंदिर देखने को मिलेंगे जो अपने आप में ऐतिहासिक और प्रसिद्ध मंदिर माने जाते है यही मंदिरो में कुछ मंदिर है :-
1. श्री महाकाल मंदिर
उज्जैन का सबसे खास और प्रसिद्ध मंदिर उज्जैन का महाकाल मंदिर है जिसका काफी वर्षो पुराना इतिहास रहा है इसकी भव्यता व सुंदरता अपने आप में बहुत खास है। आज के वर्तमान समय में इसी मंदिर को देखने व् महाकाल शिवलिंग के दर्शन करने के लिए दूर दूर से उज्जैन आते है।इस मंदिर के लिए २४ खम्बो का द्वार गेट है जो शायद दशवी शताब्दी में निर्मित किया गया हो।
2.भारत माता मंदिर
दूसरा मंदिर जो महाकाल मंदिर के पास ही स्थित है उस मंदिर को भारत माता मंदिर के नाम से जाना जाता है जो भारत माता को एक मंदिर के रूप में प्रदर्शित किया गया है ।
3. बड़ा गणेश मंदिर
महाकाल के मंदिर के पास ही एक और प्रसिद्ध मंदिर जिसको हम बड़ा गणेश मंदिर के नाम से बोला जाता है इस मंदिर में भगवान् गणेश की बड़ी प्रतिमा स्थापित है और यह पुरे उज्जैन में एक ही मंदिर है यह मंदिर भी हज़ारो वर्षो पुराना मंदिर है।
4. भारती भवन
बड़े गणेश मंदिर के सामने ही एक भारतीय भवन के नाम से भवन है जो भारत के स्वतंत्रता सग्राम के दिनों में कांतिकारियों का रेन बसेरा था इसी भर्ती भवन के राम झरोखे में बैठकर पंडित सूर्यनारायण व्यास ने उज्जयिनी में व्यास युग का निर्माण किया था।
3. विक्रमादित्य मंदिर
उज्जैन के दूसरे राजा जो की महाकाल के बाद अगर नाम लिया जाता है तो वो सम्राट विक्रामिदत्य है जिनको महाकाल के बाद उज्जैन का राजा बोला जाता है। इन्ही के नाम से उज्जैन शहर के अंदर विक्रामिदित्य के नाम से मंदिर स्थापित है जिसमे विक्रम बेताल की बड़ी प्रतिमा और इनके सिंघासन की ३२ श्लोक आपको मिलेंगे।
4. माँ हरसिद्धि मंदिर
इस मंदिर का भी पौराणिक इतिहास माना जाता है इस मंदिर में देवी सरस्वती और महालक्ष्मी के बीच माता अन्नपूर्णा विराजमान है श्रुति के अनुसार यह उज्जैन के राजा विक्रमादित्य की आराध्य देवी थी यह मंदिर 51 शक्तिपीठों में गिना जाता है।
4. श्री राम मंदिर
राम-मंदिर में भगवन राम , लक्ष्मण और सीता और जनार्दन-मंदिर में जनार्दन-विष्णु की रचना सत्रहवीं शताब्दी की है। दोनों मंदिर अपनी संरचनात्मक कला की दृष्टि से आकर्षक रूप प्रस्तुत करते हैं। इन मंदिरों का निर्माण राजा जयसिंह ने सत्रहवीं शताब्दी में करवाया था। अठारहवीं शताब्दी में मराठा काल में बाद में चारदीवारी और टैंक को जोड़ा गया था। दोनों मंदिरों की दीवारों पर मराठा चित्रों के सुंदर उदाहरण देखने को मिलते हैं।
5. गोपाल मंदिर
इस मंदिर को उज्जैन नगर का दूसरा सबसे बड़ा मंदिर कहा जाता है। यह मंदिर नगर के मध्य व्यस्ततम क्षेत्र में स्थित है। मंदिर का निर्माण महाराजा दौलतराव सिंधिया की महारानी बायजा बाई ने वर्ष 1833 के आसपास कराया था। मंदिर में कृष्ण (गोपाल) प्रतिमा है। मंदिर के चांदी के द्वार यहां का एक अन्य आकर्षण हैं।
2. उज्जैन शहर के बाहर मंदिर
आप जब उज्जैन जाओगे तो आपको उज्जैन के शहर के अंदर अंदर के साथ उज्जैन शहर के बाहर स्थापित मंदिर भी देखोगे जो काफी वर्षो पूराने और ऐतिहासिक मंदिरो में गिने जाते है :-
1. माँ गढ़कालिका मंदिर
उज्जैन शहर के बाहर स्थित गढ़कालिका मंदिर है जिसकी स्थापना सम्राट हरसवर्धन ने 600 ईस्वी में कराई थी लोक परम्परा अनुसार महाकवि कालिदास गढ़कालिका अनन्य भक्त थे जिनके कारण इस मंदिर का निर्माण करवाया गया था। इस मंदिर में गढ़कालिका की मूर्ति और भगवान् विष्णु व हनुमान जी की मूर्ति स्थापित है
2. श्री स्थिरमन गणेश मंदिर
3. श्री काल भैरव मंदिर
4. श्री सिद्धवट मंदिर
5. श्री मंगलनाथ मंदिर
6. श्री सांदीपनि आश्रम
यह वही आश्रम है जहां पर भगवान श्री कृष्ण और उनके भाई बलराम ने शिक्षा ग्रहण की थी।
3. शिप्रा नदी
उज्जैन की प्रमुख नदी कहे जाने वाली शिप्रा नदी है जो उज्जैन महाकाल मंदिर से कुछ ही दुरी पर स्थित है। यह इंदौर के उज्जैनी मुंडला गांव की ककड़ी बड़ली नामक स्थान से निकलती है।196KM बहने के बाद मंदसौर में चंबल मे मिल जाती है। खान नदी ओर गम्भीर इसकी सहायक नदी है। उज्जैन नगर के धार्मिक स्वरूप में क्षिप्रा नदी के घाटों का प्रमुख स्थान है। नदी के दाहिने किनारे, जहाँ नगर स्थित है, पर बने ये घाट स्थानार्थियों के लिये सीढ़ीबध्द हैं। घाटों पर विभिन्न देवी-देवताओं के नये-पुराने मंदिर भी है। क्षिप्रा के इन घाटों का गौरव सिंहस्थ के दौरान देखते ही बनता है, जब लाखों-करोड़ों श्रद्धालु यहां स्नान करते हैं।
उज्जैन में 12 वर्ष के अंतराल पर महाकुम्भ का मेला लगता है जिसमे बड़ी संख्या में भक्त यहाँ स्नान करने के लिए दूर दूर से आते है.।
4. उज्जैन का जंतर मंतर
उज्जैन में 18वी शताब्दी में निर्मित एक जंतर मंतर भी है जिस वेधशाला का निर्माण जयपुर के महाराजा सवाई जयसिंह ने 1719 में किया था जब वे दिल्ली के राजा मुहम्मद शाह के शासनकाल में मालवा के राज्यपाल के रूप में उज्जैन में थे। उज्जैन ने खगोल विज्ञान के क्षेत्र में काफी महत्व का स्थान प्राप्त किया है, सूर्य सिद्धान्त और पंच सिद्धान्त जैसे महान कार्य उज्जैन में लिखे गए हैं। भारतीय खगोलविदों के अनुसार, कर्क रेखा को उज्जैन से गुजरना चाहिए, यह हिंदू भूगोलवेत्ताओं के देशांतर का पहला मध्याह्न काल भी है। लगभग चौथी शताब्दी ई.पू. उज्जैन ने भारत के ग्रीनविच होने का गौरव प्राप्त किया।
5. कालियादेह पैलेस
उज्जैन मंदिर ही नहीं पैलेस भी निर्मित है जो काफी वर्षो पुराने है, कालियादेह पैलेस उज्जैन में शिप्रा नदी के तट पर स्थित है।यहाँ पर एक सूर्य मंदिर है।
यहाँ के लिए यातायात के साधन
उज्जैन में आप अपने साधन से सड़क के मार्ग द्वारा या रेल के माद्यम से और हवाई मार्ग माध्यम से उज्जैन में आ जा सकते है:-
1. सड़क मार्ग
नियमित बस सेवाएं उज्जैन को इंदौर, भोपाल, रतलाम, ग्वालियर, मांडू, धार, कोटा और ओंकारेश्वर आदि से जोड़ती हैं। अच्छी सड़कें उज्जैन को अहमदाबाद (402 किलोमीटर), भोपाल (183 किलोमीटर), मुंबई (655 किलोमीटर), दिल्ली से जोड़ती हैं। (774 किलोमीटर), ग्वालियर (451 किलोमीटर), इंदौर (53 किलोमीटर) और खजुराहो (570 किलोमीटर) आदि।
2.भारतीय रेल के माध्यम से --ट्रेन द्वारा
आप यहाँ भारतीय रेल के माध्यम से भी भारत के किसी भी हिस्से से आ सकते हो। उज्जैन पश्चिम रेलवे जोन का एक रेलवे स्टेशन है। यहाँ का UJN कोड है । यहाँ से कई बड़े शहरों के लिए ट्रेन उपलब्ध हैं।
3. वायुमार्ग
आप यहाँ देश और विदेश से हवाई मार्ग के माध्यम से भी उज्जैन आ सकते हो। यहाँ का निकटतम हवाई अड्डा देवी अहिल्याबाई होल्कर हवाई अड्डा इंदौर (53 किमी)। यहाँ से दिल्ली, मुंबई, पुणे, जयपुर, हैदराबाद और भोपाल की नियमित उड़ानें हैं।
यहाँ के लिए ठहरने की व्यवस्था
आप अगर यहां घूमने के लिए या यहाँ के बारे में जानने के लिए आते हो तो आपको यहाँ 3-4 दिन ठहरना होगा जिसके लिए आप यहाँ आकर या ऑनलाइन ही होटल बुक कर सकते हो :-
1.उज्जैन शहर में आपको कई ऐसे होटल मिलेंगे जिसमे आप 3-4 दिन के लिए आराम से ठहर सकते हो .
2.उज्जैन आपको कई ऐसे सरकारी और निजी होटल मिल जायेंगे जिसमे आप घर से भी ऑनलाइन बुक कर सकते हो और यहाँ आकर निजी होटल को भी सीधे तौर पर बुक सकते हो।
आशा करता हूँ कि आपको मेरी यहाँ दी गयी जानकारी अच्छी लगी होगी और आपके लिए काफी लाफदायक होगी। आप हमारी इस पर पोस्ट कमेंट करके जरूर बताये:-
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